कैदियों को रिहा कर सकते राज्य

14 साल की सजा पूरी कर चुके कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) के तहत अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा निर्धारित करने वाले अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने के मामलों में १४ साल की जेल की सजा काटने के बाद कैदी को रिहा करने का अधिकार है। न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और एएस बोपन्ना की पीठ ने एक फैसले में यह टिप्पणी की। हालांकि, अदालत ने कहा कि अगर कैदी ने १४ साल या वास्तविक सजा पूरी नहीं की है तो उस स्थिति में राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद १६१ के तहत क्षमा, राहत, सजा की छूट या सहायता, सजा को निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति है। राज्य सरकार और यह प्राधिकरण सीआरपीसी के तहत लगाए गए प्रतिबंधों को हटा देता है। साथ ही शीर्ष अदालत की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ की ओर से दिए गए१२ मई २०२० के फैसले को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा कैदियों को रिहा करने की शक्ति पर हरियाणा की १३ अगस्त २००८ की नीति को बरकरार रखते हुए कहा कि यह सीआरपीसी के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए और पहले के आदेश के अधिक्रमण में जारी किया था।
गन्ना किसानों की बकाया राशि पर केंद्र और राज्यों को नोटिस
दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, कर्नाटक व तमिलनाडु समेत विभिन्न राज्यों की सरकारों और चीनी मिलों को नोटिस जारी किए। याचिकाकर्ता पूर्व लोकसभा सांसद राजू अन्ना शेट्टी और अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने पीठ के समक्ष कहा कि ऐसे ही एक मामले को अदालत विचार के लिए पहले ही स्वीकार कर चुकी है। उन्होंने कहा कि एक जनवरी २०२१ तक किसानों का बकाया १८ हजार करोड़ रूपये हो गया है। उत्तर प्रदेश में किसानों को ७५०० करोड़ रूपये और कर्नाटक में ३५८५ करोड़ रूपये का भुगतान किया जाना था। अदालत ने आनंद ग्रोवर की संक्षिप्त दलील सुनने के बाद संबंधित अधिकारियों से इस संबंध में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
तीन सप्ताह के सुनवाई के बाद निर्णय
अदालत ने तीन सप्ताह बाद मामले पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से एक सख्त तंत्र स्थापित करने की मांग की है जिससे कि गन्ना किसानों को कानून के तहत गन्ने की बकाया राशि का भुगतान किया जा सके और जिससे बकाया राशि जमा न हो। उनका कहना है ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जिससे किसानों उस संकट से बच सकें जब एक चीनी मिल को बीमार घोषित कर दिया जाता है और मिल बेचने की प्रक्रिया के दौरान बकाया भुगतान नहीं होता है। इस याचिका में शीर्ष अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को गन्ना किसानों को उनकी बकाया राशि को लेकर कुछ तदर्थ भुगतान जारी करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए।

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