कान्हा के बाद अब बारहसिंघा से गुलजार होगा बांधवगढ़

तैयारियों मे जुटा पार्क प्रबंधन, बनाया जायेगा 100 हेक्टेयर का बाड़ा
उमरिया। मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व मे विलुप्त होने के बाद बारहसिंघा को फिर से आबाद कर लिया गया अब इसी तर्ज पर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मे भी बारहसिंघा बसाए जाएंगे। इसकी तैयारी लगभग पूरी हो गई है और आने वाले नए साल मे बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मे कान्हा नेशनल पार्क से चार बार मे सौ बारहसिंघा लाए जाएंगे जिन्हें यहां बसाया जाएगा।
मगधी मे बना इंक्लोजर
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मगधी मे बारहसिंघा को बसाने के लिए इंक्लोजर बनाया गया है। लगभग 100 हेक्टेयर के जंगल मे इंक्लोजर तैयार किया गया है जिसमें बारहसिंघा को रखा जाएगा। इंक्लोजर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसके अंदर कोई दूसरे जानवर प्रवेश न कर सके। यहां तक की जमीन पर रेंगने वाले सांप और अजगर भी इस इंक्लोजर के अंदर नहीं जा पाएंगे। वहीं इस एंक्लोजर की ऊंचाई इतनी रखी गई है कि कोई बाघ भी छल्लांग लगाकर अंदर प्रवेश न कर सके।
पर्याप्त मात्रा मे घास व अन्य वनस्पतियां
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मे कुल 100 बारहसिंघा लाए जाएंगे जो 4 बार मे आएंगे। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने जानकारी देते हुए बताया कि 25-25 की चार खेप मे कुल100 बारहसिंघा को कान्हा टाइगर रिजर्व से बांधवगढ़ लाया जाएगा। यहां इन्हें रखने के लिए बड़े का निर्माण कर लिया गया है। बाड़े के अंदर घास मैदान व अन्य वनस्पतियां पर्याप्त मात्रा मे है।
नए साल मे नए मेहमान
बारहसिंघा अगले वर्ष बांधवगढ़ पहुंचना शुरू हो जाएंगे। इसके लिए एक विशेषज्ञों की टीम बांधवगढ़ से कान्हा नेशनल पार्क जाएगी और वहां से बारहसिंघा को लेकर आएगी। इसकी सभी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। एनटीसीए के अधिकारियों के मार्गदर्शन मे बारहसिंघा की शिफ्टिंग का काम होगा। इस बारे मे जानकारी देते हुए फ ील डायरेक्टर बीएस अन्नागिरी ने बताया कि बांधवगढ़ मे बारहसिंघा के आने से पर्यटन को एक नया रुझान मिलेगा और पर्यटकों को यहां नए मेहमान देखने को मिलेंगे।
80 के दशक मे विलुप्त हुए बारहसिंघा
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मे किसी जमाने मे बारहसिंघा हुआ करते थे। रीवा रियासत की शिकारगाह रहा बांधवगढ़ सही तरह के जंगली जानवरों से भरपूर रहा है। लगभग 40 वर्ष पूर्व 80 के दशक मे बारहसिंघा यहां से अनुकूल पिरिस्थिति नहीं मिलने से विलुप्त हो गए। इसके लिए तीन बड़े कारण थे जिनमें सबसे मुख्य कारण था उस ऊंची घास का खत्म होना जिसमें बारहसिंघा रहते थे। जबकि शिकार और जंगल में अतिक्रमण भी एक वजह थी। 1938 मे जहां कान्हा के जंगलों मे बारहसिंघों की संख्या 3000 थी वहीं 1970 तक यह संख्या 66 रह गई। 1972 मे नेशनल पार्क बनने के बाद बारहसिंघों के अस्तित्व को बरकरार रखने का अभियान शुरू हुआ और आज कान्हा टाइगर रिजर्व मे एक हजार से ज्यादा बारहसिंघा है। बारहसिंघों के पतन और उत्थान पर लिखी गई केएस चौहान और डॉ.राकेश शुक्ला की किताब बारहसिंघा कन्जर्वेशन एट कान्हावाइल्ड लाइफ मे बारहसिंघा के अस्तित्व की पूरी कथा है।
इनका कहना है
बारहसिंघा की शिफ्टिंग के लिए एनटीसीए से अनुमति मिल चुकी है। इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया है। नए साल मे नए मेहमान बांधवगढ़ पहुंच जाएंगे।
लवित भारती
डिप्टी डायरेक्टर,
बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व

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