निजी कोयला खदानो मे नहीं मिलेगा लोगों को रोजगार, धन्नासेठों की पौ बारह
बांधवभूमि, उमरिया
जिले की धरती मे दबा काला हीरा वर्षो से इस क्षेत्र की तरक्की का आधार रहा है। पहले डब्ल्यूसीएल फिर एसईसीएल की कोयला खदानो ने हजारों लोगों को नौकरियां दीं। उमरिया, पिपरिया, नौरोजाबाद, विंध्या, पिनौरा, बिरसिंहपुर पाली, पाली प्रोजेक्ट आदि कालरियों मे काम करने वाले कामगारों ने नकेवल अपना परिवार चलाया बल्कि उनको मिलने वाले वेतन से इन शहरों के व्यापार को भी चलायमान रखा। आज भी जिले का कारोबार और बड़ी आबादी सरकारी उपक्रम द्वारा संचालित खदानो पर आश्रित है, परंतु अब उनकी मुश्किलें बढऩे वाली हैं। इसकी मुख्य वजह सरकार की निजीकरण नीति है।
शाहपुर मे खरीदी जा चुकी जमीन
हालत यह है कि जिले के शाहपुर मे खुलने जा रही कोयला खदान मे स्थानीय लोगों अथवा बेरोजगारों को नौकरियां मिलने की कोई गुंजाईश नहीं है। क्योंकि कम्पनी किसानो की जमीने खरीद कर माइनिंग करने की तैयारी मे है। बताया गया है कि शाहपुर पश्चिम भूमिगत कोयला खदान का ठेका मे. शारदा एनर्जी एण्ड मिनिरल्स कम्पनी को मिला है। जिसके द्वारा उत्पादन क्षेत्र की भूमि 10 लाख रूपये प्रति एकड़ मे खरीदी जा चुकी है।
सिर्फ कम्पनी को होगा मुनाफा
जानकारों का मानना है कि निजी कम्पनी बड़ी-बड़ी मशीनो से कोयले की ख्ुादाई और परिवहन करेगी। इसमे मैन पॉवर का उपयोग नहीं के बराबर होगा, वहीं तेजी के सांथ कोयले का उत्पादन किया जायेगा। कुछ ही वर्षो मे खदान का कोयला खत्म हो जायेगा। इसका फायदा न तो स्थानीय लोगों और ना ही जिले के व्यापारियों को होगा। सरकार को भी इससे कुछ हांसिल नहीं होने वाला। जबकि कम्पनी कुछ ही दिनो मे मालामाल हो जायेगी, वहीं ग्रामीणो के हिस्से मे खण्डहर और प्रदूषण ही आयेगा।
40-40 साल से लोगों का पेट पाल रही कालरियां
उल्लेखनीय है कि जिले मे एसईसीएल की कई ऐसी कोयला खदाने हैं, जो करीब 40-40 सालों से भी ज्यादा समय से चल रही हैं। फिलहाल इनमे कर्मचारियों की संख्या कम कर दी गई है, लेकिन किसी भी जमाने मे हजार से भी अधिक लोग इन खदानो मे काम करते थे। उमरिया मे करीब 10 करोड़ रूपये प्रतिमांह वेतन का वितरण कालरी कर्मचारियों को किया जाता था। कोयले से तो सरकार को कमाई होती ही थी, इस रकम से होने वाले व्यापार से करोड़ों रूपये सालाना टेक्स के रूप मे शासन के खजाने मे जाता था। निजीकरण की नीति से खदानो का पूरा फायदा अब सिर्फ एक व्यक्ति के जेब मे ही जायेगा।
इसलिए हुआ था राष्ट्रीयकरण
मजदूरों की दुर्दशा और निजी खदान मालिकों की मनमानी के कारण वर्ष 1972 के आसपास तत्कालीन इंदिरा सरकार द्वारा कोयला खदानो का राष्ट्रीयकरण किया गया था। इसका मकसद कमाई से ज्यादा वेलफेयर था। करोड़ों की आबादी वाले इस देश मे लोगों को रोजगार देना ज्यादा जरूरी समझा गया। इसका नतीजा भी जल्दी सामने आ गया। एक ओर जहां लाखों बेरोजगारों को नौकरियां मिली, कमाई का विकेन्द्रीकरण हुआ सांथ ही इस उद्योग पर सरकार का नियंत्रण हो गया। करीब 50 वर्ष बाद हालात फिर से बदलने जा रहे हैं।
कम्पनी को कमाई, जिले को ठेंगा
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