कमीशन की चाह मे ताक पर नौनिहालों का भविष्य

एनसीईआरटी की बजाय निजी स्कूल करा रहे प्रायवेट पब्लिकेशन की किताबों से पढ़ाई
बांधवभूमि, उमरिया
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, परंतु यह कहावत तभी लागू होती है, जब जलने वाला मुंह अपना हो। अर्थात नुकसान खुद का होने वाला हो, वर्ना क्या दिक्कत है। यही हाल जिले के निजी स्कूल संचालक और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले विभागों का है। जिनकी मिलीभगत से नौनिहालों का भविष्य तबाह हो रहा है। मामला है निजी शिक्षण संस्थानो द्वारा शासन के आदेश को धता बता कर मनमाने तौर पर प्रायवेट पब्लिकेशन की किताबों से पढ़ाई कराने का। दरअसल बच्चों को आगे की कक्षाओं मे कठिनाई न हो, इसे ध्यान मे रखते हुए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सभी शिक्षण संस्थानो को क्लास 1 से 8 तक मध्यप्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा मुद्रित एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को लागू करने का निर्देश जारी किया गया था। इसके बावजूद जिले के अधिकांश निजी स्कूलों मे मनमाने तौर पर प्रायवेट पब्लिकेशन के किताबों से पढ़ाई कराई जा रही है।
पहले भी हो चुकी है गड़बड़ी
जानकारों के मुताबिक कक्षा 5 और 8 को छोड़ कर अन्य सभी कक्षाओं मे एनसीईआरटी की बजाय प्रायवेट पाठ्यक्रम की किताबें लागू हैं। ऐसे मे अब बच्चे पहली से चौथी की पढ़ाई प्रायवेट किताबों से करेंगे और 5वीं एनसीईआरटी की किताबों से। पुन: 6वीं और 7वीं की पढ़ाई प्रायवेट पब्लिकेशन से होगी, जबकि 8वीं मे उन्हे एनसीईआरटी की किताबें पढऩी होगी। इससे नकेवल निर्धारित पाठ्यक्रम का क्रम टूटेगा बल्कि अलग-अलग किताबों से पढ़ाई करने का असर 5वीं और 8वीं की बोर्ड परीक्षाओं मे दिखना तय है। गौरतलब है कि इसी मनमानी की वजह से बीते वर्ष जिले मे 5वीं और 8वीं की कक्षाओं का रिजल्ट औंधे मुंह जा गिरा था, जिसे सुधारने के लिये शासन को स्वयं हस्ताक्षेप करना पड़ा था।
लुटवाये जा रहे अभिभावक
बताया गया है कि पूरे प्रदेश मे कक्षा 5 तथा 8वीं की परीक्षाएं एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के आधार पर होती हैं। इसी मजबूरी की वजह से केवल दो कक्षाओं को छोड़ कर शेष की पढ़ार्ई प्रायवेट पब्लिकेशन की किताबों से कराई जा रही है। वहीं शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों का दावा है कि प्रायवेट पब्लिकेशन की किताबों से निजी स्कूलों का इतना मोह ऐसे ही नहीं है। ये किताबें एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से 10-15 गुना मंहगी हैं। जिससे निजी स्कूल संचालकों को 40 से 60 प्रतिशत तक कमीशन मिलता है। मोटी कमाई की लालच मे कई संस्थान नकेवल बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ और अभिभावकों को लुटवाने का काम कर रहे हैं।
नहीं की जाती मॉनिटरिंग
सूत्रों का मानना है कि शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से ही जिले मे ऐसी स्थिति निर्मित हुई है। बताया जाता है कि कक्षा 1 से 8वीं तक के संस्थानो के मॉनटरिंग की जिम्मेदारी डीपीसी की है, जिनके द्वारा कभी भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया जाता। यदि ऐसा होता तो जिले के शिक्षण संस्थान निर्धारित सिलेबस से पढ़ाई कराने की बजाय प्रायवेट पाठ्यक्रम की किताबें बच्चों पर थोपने की हिमाकत नहीं करते। बहरहाल इस लापरवाही को नये सत्र से रोका जाना बेहद जरूरी है। यदि समय रहते ऐसा नहीं हुआ तो काफी देर हो जायेगी, जिसका खामियाजा इस वर्ष भी बच्चों को ही भुगतना होगा।
इनका कहना है
इस संबंध मे जिला शिक्षा अधिकारी उमेश धुर्वे ने बताया कि कक्षा 1 से 8वीं तक की स्कूलों की मॉनिटरिंग का कार्य जिला शिक्षा मिशन के जिम्मे है। जब डीपीसी से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होने कॉल रिसीव नहीं किया।

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