उमरिया-पाली मे स्टापेज नहीं, बंधवाबारा मे घंटों खडी रहती हैं ट्रेने
रेलवे को महसूस नहीं हो रहा यात्रियों का दर्द, जिले के खैरख्वाहों ने भी साधा मौन
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
रेलवे की चाल भी स्वास्थ और शिक्षा विभाग के नक्शे कदम पर है, जिनके पास बडे-बडे भवन तो हैं, पर इलाज के लिये डॉक्टर और बच्चों को पढाने वाले मास्टर नहीं हैं। हाल ही मे उमरिया सहित कई स्टेशनो का कायाकल्प हो रहा है, करोडों की लागत से बडे-बडे गेट और चौडी सडकें बन रही हैं, जिन पर चल कर यात्री स्टेशन पहुंच जायेंगे पर उनकी असली जरूरत तो ट्रेन है, जो रूकती ही नहीं। वर्षो की गुहार के बाद भी मुख्यालय सहित जिले के कई महत्वपूर्ण स्टेशनो पर दर्जनो यात्री गाडियों का स्टापेज नहीं मिल सका है। इनमे कुछ ट्रेने तो ऐसी हैं, जो कोरोना के पहले तक इन स्थानो पर रूकती चली आ रही थीं परंतु आपदा मे अवसर खोज कर रेलवे ने उन्हे बंद कर दिया। कानपुर से दुर्ग जाने वाली बेतवा भी इन्हीं मे से एक है। मजे की बात तो यह है कि कटनी से छूटने वाली कई गाडियां बीच मे कोई ठहराव नहीं होने के कारण शहडोल अपने समय से पहले पहुंच जाती हैं, जिन्हे या तो बंधवाबारा अथवा आउटर पर घंटों खडा कर दिया जाता है। यहां की बजाय यदि उमरिया और पाली मे दो-दो मिनट का स्टापेज दे दिया जाय तो सैकडों लोगों को राहत मिल सकती है।
रीवा-भोपाल से खुश हो कर पीट रहे ढोल
यात्री सुविधाओं को लेकर हो रही जिले की घोर उपेक्षा के बावजूद इस संबंध मे किसी भी तरह की पहल या प्रयास नहीं किये जा रहे। नागरिक अरसे से मुंबई, अहमदाबाद आदि महानगरों के लिये सीधी सेवा की मांग कर रहे हैं। इंदौर और भोपाल के लिये भी महज नर्मदा, अमरकंटक और भोपाल-बिलासपुर ट्रेने हैं, जिनमे अमरकंटक और भोपाल-बिलासपुर औलट समय के कारण अनुपयोगी है। लिहाजा सारा प्रेशर इंदौर-बिलासपुर पर रहने से इसमे रिजर्वेशन मुश्किल से मिल पाता है। हाल ही मे रेलवे ने रीवा से भोपाल एक और ट्रेन शुरू कर दी है। इसकी घोषणा होते ही जिले के छुटभैये सोशल मीडिया पर नाचने लगे। उनकी खुशी से ऐसा महसूस हुआ जैसे यह गाडी उमरिया हो कर भोपाल जायेगी। जानकारों का मानना है कि बेमतलब का ढोल पीटने की बजाय यदि ये लोग अपने आकाओं पर अपने जिले का ख्याल रखने का दबाव बनाते तो तस्वीर बदलने की उम्मीद जग जाती।
मुफ्त मे श्रेय लेने की होड
इस समस्या पर खैरख्वाहों के मौन ने जनता की तकलीफ को निराशा मे बदल दिया है। हालत यह है कि अब कोई भी उपलब्धि इसलिये मिल जाती है कि उमरिया और शहडोल के स्टेशन बिलासपुर-कटनी रूट पर पडते हैं। हलांकि अपने आप चलने या रूकने वाली गाडी की खबर मिलते ही मुफ्त मे श्रेय लेने की होड मच जाती है। कई गुर्गे सोशल माडिया पर अपने नेता से लेकर रेलमंत्री का फोटो डाल कर यह जताने लगते हैं कि वे न हों तो कुछ भी संभव है।
मुंह चिढाते गुजर जाती हैं 28 ट्रेने
उपेक्षा का हाल यह है कि जिला मुख्यालय और बांधवगढ राष्ट्रीय उद्यान जैसे विश्व स्तरीय पर्यटन केन्द्र पहुंचने का एक मात्र स्टेशन होने के बावजूद उमरिया से 28 ट्रेने मुंह चिढाती हुई गुजर जाती हैं। इनमे 20972 शालीमार-उदयपुर, 22830 शालीमार-भुज, 20847 दुर्ग-ऊधमपुर, 12536 रायपुर-लखनऊ, 20472 पुरी-बीकानेर, 22910 पुरी-वलसाड, 18573 विशाखापट्टनम-भगत की कोठी, 08061 शालीमार-जयपुर, 01662 पुरी-हबीबगंज, 18203 दुर्ग-कानपुर, 20828 सांतरागाछी-जबलपुर, 22170 सांतरागाछी-हबीबगंज,14720 बिलासपुर-बीकानेर, 08791 दुर्ग-जम्मूतवी ट्रेनो का ठहराव उमरिया मे नहीं है। इसी तरह 12535 लखनऊ-रायपुर, 20472 ऊधमपुर-दुर्ग, 18204 कानपुर-दुर्ग, 08062 जयपुर-शालीमार, 08792 जम्मूतवी-दुर्ग, 01661 हबीबगंज-पुरी, 22909 वलसाड-पुरी, 14719 बीकानेर-बिलासपुर, 20971 उदयपुर-शालीमार, 22829भुज-शालीमार, 20741बीकानेर-पुरी,18574 भगत की कोठी-विशाखपट्टनम, 20827 जबलपुर-सांतरागाछी, 22169 हबीबगंज-सांतरागाछी गाडियां भी स्टेशन को टाटा करती जाती हैं।