आज जलेगी होली, कल चेहरों पर रंगोली

आज जलेगी होली, कल चेहरों पर रंगोली
होलिका दहन के सांथ शुरू होगा उल्लास और उमंग का त्यौहार
बांधवभूमि, उमरिया
अहंकार, छल और द्वेष जैसी बुराइयों की प्रतीक होलिका आज रात जलाई जाएगी। होली जलने के बाद कल सबके चेहरों पर अलग अलग रंगों से रंगोली चढ़ जाएगी। फाग का दौर चलेगा होली की हुड़दंग होगी और बड़ी-बूढ़ी महिलाएं राई-लोने से छोटे बच्चों की बलाएं उतार दहकती होलिका मे झोंक देंगी। इसी के साथ पांच दिनों तक चलने वाले रंगोत्सव की शुरूआत हो जाएगी। होली का त्यौहार हमे सिखाता है कि ईष्या, वैमन्यस्यता और कटुता को राई लोन की तरह जलती होलिका मे उतार फेंके और चहुओर सौहार्द व उल्लास का वातावरण निर्मित करें। जिले भर में परीक्षाओं के बावजूद हुरियार होलिका के लिए अधिक से अधिक लकडिय़ों और घास-फूंस के जुगाड़ मे जुटे हुए हैं। होलिका मे आग की लपटें जितनी ऊपर जाएगी, उतना ही मजा आएगा। हलांकि जिला प्रशासन ने होलिका दहन मे लकड़ी की बजाय गोबर के कंडों का उपयोग करने व धुरेड़ी के दिन पानी बचाने के लिये सूखी होली खेलने की वकालत की है। जिसका असर नागरिकों मे दिखाई दे रहा है। उल्लेखनीय है कि इस पांच दिवसीय पर्व के पहले दिन होलिका जलाई जाती है, दूसरे दिन धुरेड़ी मनाई जाती है, तीसरे दिन भाईदूज होता है तथा चौथे और पांचवे दिन क्रमश: फाग व रंगपंचमी मनाई जाती है।
शुभ मुहूर्त रात्रि 9.16 से 11.16 तक
ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र नाथ द्विवेदी के मुताबिक इस साल 17 मार्च 2022 को होलिका दहन और 18 मार्च 2020 को रंगों का त्योहार मनाया जाएगा। 17 मार्च को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात्रि 9:16 बजे से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक है। ज्योतिषियों के अनुसार होलिका दहन भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि की प्रदोष वेला मे ही किया जाना चाहिए। बताया गया है कि 17 मार्च को 01 बजकर 29 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ होगी, जिसका समापन 18 मार्च 2022 को 12 बजकर 47 बजे होगा।
रासायनिक रंगों से बचें
वहीं जाने-माने चिकित्सकों ने लोगों को रासायनिक रंगों से बचने की सलाह दी है। उनका कहना है कि घातक रसायनयुक्त रंग आपके त्वचा की रंगत छीनकर न सिर्फ उसे बेजान कर सकते हैं बल्कि कई रोगों का कारण भी बन सकते हैं। होली मे पेस्ट या कालिख इत्यादि का उपयोग कत्तई नही करना चाहिए। होली मे कुदरती रंगों का प्रयोग त्वचा को हानि पहुंचाने की बजाय उसे और निखार देता है। इन रंगों के कोई साइड इफेक्ट नही होते। इन दिनों पलाश के पेड़ टेसुओं से आच्छादित हैं रंगों के लिए टेसू या सेम के पत्तों का प्रयोग किया जा सकता है।

 

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