अब नदी से नहीं टकरायेगी जर्जर नाव

10वीं-12वीं के सिलेबस से महत्वपूर्ण साहित्य हटाने को बुद्धिजीवियों ने बताया अनुचित
अब नदी से नहीं टकरायेगी जर्जर नाव
मशहूर कविता, लेख और कहानियों से महरूम होंगे छात्र

उमरिया। माध्यमिक शिक्षा मण्डल द्वारा शैक्षणिक सत्र 2020-21 की बोर्ड परीक्षाओं के लिये 10वीं एवं 12वीं कक्षाओं के पाठ्यक्रम मे 20 से 30 प्रतिशत तक की कटौती की गई है। 10वीं के सिलेबस से जहां राष्ट्रकवि दुष्यंत कुमार की मशहूर कृति इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है और मीरा के पद गायब हैं। वहीं 12वीं से कवि गोपाल सिंह नेपाली, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का बसंत गीत, डा. शिवप्रसाद सिंह का रंगोली, लेखक जैनेन्द्र कुमार की कहानी खेल आदि हटा दिये गये हंै। ये सभी देश के ऐसे महान कवि और कथाकार माने गये हैं, जिनकी रचनायें कालजयी होने के सांथ न सिर्फ कुरीतियों पर कठोर प्रहार कर समाज को सही रास्ता दिखाती हैं बल्कि संघर्ष और कठिन परिस्थितियों मे आत्मविश्वास की प्रेरणा देती हैं। इसी तरह अंगे्रजी, संस्कृति, भौतिक रसायन शास्त्र, गणित, जीव विज्ञान सहित सभी विषयों से दो से तीन पाठ कम किये गये हैं। सरकार के इस निर्णय के पीछे कारण चाहे जो भी हो, परंतु जिले के बुद्धिजीवियों को यह रास नहीं आ रहा है। अधिकांश लोगों का मत है कि देश की महान संस्कृति से परिचित कराने वाले साहित्य से छात्रों को महरूम करना किसी भी स्थिति मे उचित नहीं है।

चिंतन पर प्रतिबंध
ऐसी महान कवितायें जो व्यक्ति के मानस पटल पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं, को पाठ्यक्रम से हटाना दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल सरकार अब चिंतन पर भी प्रतिबंध लगाना चाहती है।
शंभू सोनी ‘पागल’
कवि,चिंतक
उमरिया

बौद्धिक अतिक्रमण
भाजपा सरकार हर आपदा मे अवसर ढूंढ ही लेती है। पाठ्यक्रम से कम उपयोग की चीजें भी हटाई जा सकती थी परंतु ऐसा न करके उन कविाताओं, कहानियों और लेखों को बाहर किया गया जो दकियानूसी सोच पर प्रहार करती हैं। यह सब सोची-समझी साजिश है, या यूं कहें कि सरकार अब बौद्धिक अतिक्रमण पर उतारू है।
अजय सिंह
अध्यक्ष
श्री रघुराज मानस कला मंदिर
उमरिया

और भी कई तरीके
देश के महान लेखकों, कवियों और बुद्धिजीवियों ने समाज को हमेशा एक दिशा दी हैं। उनकी रचनायें व्यक्तित्व को निखारने के सांथ व्यक्ति को सामाजिक सरोकारों से जुडऩे के लिये प्रेरित करती हैं। इनका अध्ययन छात्रों के लिये बेहद जरूरी है। किसी कारण से यदि सिलेबस को कम करना ही था, तो उसके कई तरीके हैं, परंतु इस तरह देश की सांस्कृतिक धरोहर को हटाना अनुचित है।
श्रीशचंद्र भट्ट
सेवानिवृत प्राचार्य, उमरिया

नहीं होनी चाहिये कटौती
सरकार मे एक से एक योग्य और शिक्षाविद् मौजूद हैं अत: जो भी निर्णय लिया गया होगा वह सोच-समझ कर तथा परामर्श लेकर ही किया गया होगा। इस पर कोई टिप्पणी करना ठीक नहीं है। फिर भी मेरी व्यक्तिगत राय है कि देश के महान कवियों, कथााकारों और लेखकों की कृतियों को नहीं हटाया जाना चाहिये।
दिनेश त्रिपाठी
वरिष्ठ अधिवक्ता
जिला न्यायालय, उमरिया

 

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