MP में पंचायत चुनाव पर ‘पंचायत’

सरपंचों के अधिकारों पर वेट एंड वॉच, सरकार नहीं ले पाई डिसीजन- किसे दें पंचायत का संचालन

भोपाल।मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव रद्द होने के बाद दोबारा परिसीमन शुरू हाे गया। अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है। इस बीच, तीसरी सरकार कही जाने वाली पंचायतों की बागडोर जनप्रतिनिधियों से छिन गई है, लेकिन सरकार अंतिम रूप से ये निर्णय नहीं ले पा रही है कि पंचायत के संचालन के लिए जिम्मेदारी प्रधान प्रशासकीय समिति को दी जाए या नहीं। सरकार इस मामले को राजनीतिक रूप से देख रही है। इसलिए पंचायत, जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत में प्रधान प्रशासकीय समिति को दिए अधिकार स्थगित किए गए। इस मामले अभी सरकार वेट एंड वॉच की स्थिति में है। दरअसल, सरकार को जनप्रतिनिधियों से जो फीडबैक मिला, उसके बाद आनन-फानन में 4 जनवरी को जो दो अधिकार दिए गए थे, वह 5 जनवरी को वापस ले लिए। इसके कारण प्रदेश की सियासत में उबाल आ गया। माना जा रहा है कि लगातार सात साल से प्रधानों के जस के तस बने रहने पर ग्रामीण आपत्ति ले रहे हैं। इसके अलावा, चुनाव नहीं होने के कारण अन्य लोगों को अवसर नहीं मिल पा रहा। वहीं, 5 जनवरी के आदेश के बाद जनप्रतिनिधियों में आक्रोश है। वह अधिकारों की वापसी की मांग कर रहे हैं। प्रदेश में 22,604 पंचायतों में सरपंच और पंच का कार्यकाल मार्च, 2020 में पूरा चुका है। इसी के साथ 841 जिला और 6774 जनपद पंचायत सदस्यों का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है। प्रदेश में पंचायत चुनाव निरस्त होने के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने पंचायतों में कार्यों के संचालन के लिए प्रधान प्रशासकीय समिति की व्यवस्था लागू की। विभाग ने 4 जनवरी को आदेश जारी कर सरपंच व सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से बैंक खातों का संचालन करने का अधिकार दिया गया था। जिसे 5 जनवरी को वापस ले लिया गया।

परिसीमन में मनमर्जी का आरोप

दोबारा परिसीमन शुरू किया जा रहा है, लेकिन प्रधानों के पास अधिकार नहीं होने के कारण कांग्रेस का आरोप है कि इसमें भी मनमर्जी की जा सकेगी। परिसीमन में जनप्रतिनिधियों का अभिमत मांगा जाता है। जब उनके पास किसी प्रकार के अधिकार ही नहीं रहेंगे, तो उनकी पूछ परख नहीं हो सकेगी। अधिकारी सबकुछ मनमर्जी से करेंगे।

गांव के विकास में आएगी रुकावट

सरपंचों से अधिकार वापस लिए जाने के कारण गांवों के विकास कार्यों में रुकावट आएगी। मनरेगा से होने वाले कार्य भी अटकेंगे। इनके बिना विकास कार्यों में गति नहीं आ सकती।

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