22 दिनो मे मात्र 7 किसानो ने बेचा गेहूं
खाली पडे सरकारी उपार्जन केन्द्र, दाम कम होने के बाद भी बाजारों मे ज्यादा आवक
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
जिले मे गेंहू की सरकारी खरीदी इस बार भी बेहद मंद गति से हो रही है। खाद्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक 19 अप्रेल 2024 तक मात्र 7 किसानो से 212 क्विंटल फसल कृय की गई है। हालत यह है कि अधिकांश उपार्जन केन्द्र खाली पडे हैं और वहां पदस्थ स्टाफ बिल्कुल फुरसत बैठा हुआ है। उल्लेखनीय है कि जिले मे इस बार 14 हजार 509 किसानो ने अपना पंजीयन कराया था। जो कि गत सीजन से भी ज्यादा है। रबी फसलों का उपार्जन 29 अप्रेल को शुरू हो हुआ था, जो कि आगामी 15 मई को समाप्त होगा। कृषि से जुड़े सूत्रों का मानना है कि विगत दो महीनो से मौसम के प्रतिकूल व्यवहार के कारण कटाई और गहाई मे काफी व्यवधान उत्पन्न हुआ है। हलांकि इसके बाद भी अधिकांश अनाज गहाई के बाद किसानो के घर पहुंच चुका है। ऐसे मे अभी तक कम से कम पचास प्रतिशत उपार्जन तो हो ही जाना चाहिये, परंतु 22 दिनो मे खरीदी 20 प्रतिशत के आंकडे को भी नहीं छू पाई है।
क्यों घटता जा रहा उपार्जन
पिछले कुछ वर्षो से खुले बाजार मे गेहूं की मांग बढी है, जिससे इसके दामो मे कुछ सुधार हुआ है। अनाज मंडी की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि वर्तमान मे यहां के व्यापारी 2200 रूपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं की खरीद कर रहे है। जबकि इसका सरकारी समर्थन मूल्य 2275 और 125 अर्थात 2400 रूपये प्रति क्विंटल है। इस तरह 200 रूपये दाम कम होने के बाद भी किसान उपार्जन केन्द्रों की बजाय खुले मार्केट मे अपनी फसल बेंचना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इसका कारण बाजार मे आसान खरीदी और तुरंत भुगतान का होना है। किसानो का कहना है कि समर्थन मूल्य खरीदी केन्द्रों मे दाने की क्वालिटी से लेकर माल की तौल तक उन्हे तरह-तरह के नाज नखरे सहने पडते हैं। वहीं उपार्जन का भुगतान भी रूक कर खातों मे आता है। इतना ही नहीं बैंकों मे अपने ही पैसे के लिये लाईन मे लगने की परेशानी अलग। कई बार नगदी की किल्लत के कारण बैंक भुगतान करने मे हीला-हवाली भी करते हैं। दूसरी ओर व्यापारी माल खरीदते ही रकम तत्काल किसान के हांथ मे रख देते हैं।
घाटे का सौदा साबित हो रही गेहूं की खेती
मौसम के कारण जिले मे इस बार गेहूं का उत्पादन काफी कम हुआ है। किसानो ने बताया कि गहाई के बाद उनके हांथ मे उम्मीद से करीब 20 प्रतिशत कम अनाज आया है। इसका कारण दाने आर बालियों का कमजोर होना है। उन्होने बताया कि बेमौसम बरसात तथा जलवायु परिवर्तन के कारण फसल बहुत ही ज्यादा मार खा गई। कई किसानो का कहना है कि गेहूं की खेती अब उनके लिये घाटे का सौदा होती जा रही है। एक तरफ जहां खाद, बीज, सिचाई, बिजली, डीजल और मजदूरी के दाम कई गुना बढ गये हैं, वहीं दूसरी ओर उपज की कीमतें वहीं की वहीं है। आज की तारीख मे एक क्विंटल गेहूं की फसल उगाने मे 2500 रूपये का खर्च आता है। किसान का मेहनताना और न्यूनतम प्रॉफिट मिला कर इसका दाम कम से कम 3500 रूपये होना चाहिये, जबकि समर्थन मूल्य अभी भी 2400 रूपये प्रति क्विंटल पर टिका हुआ है।
पंजीयन के बाद भी फसल नहीं बेंच रहे किसान
आंकडों पर नजर डालें तो किसान उपार्जन के लिये अपना पंजीयन तो करा रहे हैं, लेकिन फसल लेकर केन्द्रों तक नहीं आ रहे। बीते साल जिले मे 14 हजार 393 किसानो का पंजीयन हुआ, जिनमे से महज 5 हजार 594 ने 1 लाख 86 हजार 653.81 क्विंटल गेहूं का विक्रय किया। वहीं इस वर्ष 14 हजार 509 किसानो ने अपना पंजीयन पोर्टल पर कराया है, लेकिन अभी तक केवल 7 किसान ही अपनी उपज लेकर आये हैं। गौरतलब है कि शासन द्वारा जिले के विभिन्न क्षेत्रों मे 34 उपार्जन केन्द्र स्थापित करने के सांथ ही वहां पर सभी तरह के इंतजामात किये हैं। इस व्यवस्था मे प्रतिदिन लाखों रूपये का खर्च हो रहा है।