हाथियों के नाम पर रौंदी आस्था

बांधवगढ़ मे नहीं मिला जनता को प्रवेश, युवराज ने की मंदिर मे पूजा
बांधवभूमि, उमरिया
जिले के बांधवगढ़ मे कल जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले मेले का आयोजन अंतत: नहीं हो सका। पार्क मे श्रद्धालुओं के प्रवेश के लिये पूर्व रीवा रियासत के युवराज और सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह ने काफी कोशिश की। वे स्थानीय लोगों और समर्थकों के सांथ करीब 16 घंटे तक ताला मे धरने पर भी बैठे रहे परंतु इसका कोई फायदा नहीं हुआ। काफी दबाव और गहमागहमी के बावजूद प्रशासन और उद्यान प्रबंधन इसे रोकने मे कामयाब रहा। हलांकि आखिर मे युवराज को 5 गाडिय़ों के काफिले सहित अंदर जाने की इजाजत मिल गई, जिसके बाद वे किले पर पहुंचे और श्रीराम जानकी मंदिर मे पूजा-अर्चना की।
कई बार हुई गरमा-गरमी
गौरतलब है कि बांधवगढ़ मे मेले के आयोजन और आम लोगों को पूजा-अर्चना की अनुमति को लेकर गुरूवार शाम से ताला मे तनाव बढ़ गया था। गुरूवार की दोपहर प्रशासन द्वारा पार्क के अंदर का मुआयना कराने से इंकार के बाद युवराज दिव्यराज सिंह शाम 5 बजे धरने पर बैठ गये। धीरे-धीरे वहां लोगों का पहुंचना शुरू हो गया। रात को पहले उद्यान के संचालक, उप संचालक वहां पहुंचे। उनके जाने के बाद कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने आ कर विवाद को सुलझाने का प्रयास किया परंतु बात नहीं बनी और धरना रात भर चलता रहा।
वेन मे डाले गये प्रदर्शनकारी
रात को ही लोगों को रोकने के लिये मुख्य मार्गो पर बेरीकेटिंग के सांथ पार्क के प्रवेश द्वार पर भारी मात्रा मे पुलिस बल तैनात करा दिया गया। सुबह जहां प्रदर्शनकारियों की संख्या तेजी से बढऩे लगी, वहीं भाजपा नेता भी मौके पर पहुंचने लगे। तभी युवराज तथा अन्य लोगों ने पार्क के अंदर जाने का प्रयास किया। जिस पर पुलिस द्वारा उन्हे वैन मे ले जाया गया। बड़ी देर तक नारेबाजी और हल्ले-गुल्ले के बाद कलेक्टर और एसपी ने वैन मे जा कर दिव्यराज से चर्चा की। इस बार उन्हे सफलता मिली और मामले का पटाक्षेप हो गया।
अधिकारियों ने बनाया माहोल
जन्माष्टमी पर मेले का आयोजन न होने से लोगों मे काफी निराशा है। उनका आरोप है कि पार्क और प्रशासन के अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये ऐसा माहोल बनाया। उन्होने जंगली हाथियों के बहाने जिले की वर्षो पुरानी परंपरा और धार्मिक आस्था को रौंदने का काम किया है।
बिना सहयोग, कैसे बचेगी धरोहर
क्षेत्र के जानकार अधिकारियों के इस निर्णय को आत्मघाती बता रहे हैं। वे कहते हैं कि हर महीने लाखों रूपये की मोटी तन्ख्वाह के सांथ मुफ्त की गाड़ी, बंगला और नौकर-चाकर की सुविधायें भोगने वाले अफसरों को यह समझना होगा कि पार्क का अस्तित्व और सुरक्षा स्थानीय लोगों से है। बात-बात पर उन्हे अपमानित, प्रताडि़त करने और उनकी आस्था पर चोट पहुंचाने से बांधवगढ़ की अमूल्य धरोहर कहीं खतरे मे न पड़ जाय।

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