हाथियों के डर से भाग रहे बाघ
अतिथियों के स्थाई निवास ने असंतुलित किया बांधवगढ़ का वन्यजीवन
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश, उमरिया
जिले का बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान बीते कुछ सालों से निरंतर अशांत हो चला है। एक ओर यहां के बाघ जंगल छोड़ कर इंसानी बस्तियों मे लोगों की जान-माल के लिये खतरा रहे हैं, तो दूसरी ओर जंगली हाथियों का उत्पात बढ़ता ही जा रहा है। जानकारी के अनुसार गुजरे वर्ष मे बाघों ने सात लोगों पर हमला कर उन्हे मौत के घाट उतार दिया। जबकि नये साल मे अभी तक दो ग्रामीणो को अपनी जान गवानी पड़ी है। इन घटनाओं मे कई ग्रामीण गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। ये सारे मामले नेशनल पार्क से सटे गावों तथा उनके आसपास के हैं। जानकार इसके लिये जंगली हाथियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका मानना है कि शांतिप्रिय बाघों को हाथियों की उपस्थिति असहज कर देती है। उनके द्वारा पेड़, पौधे और घास के मैदानो को बुरी तरह रौंदा जाता है। जिसके कारण हिरण, चीतल आदि जीव अपना पेट भरने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। इन्हीं के पीछे-पीछे बाघ भी गावों की ओर आ जाते हैं।
बढ़ती गई हाथियों की तादाद
नेशनल पार्क मे हाथियों के आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। कहा जाता है कि कुछ साल पहले एक हांथी छत्तीसगढ़ से भटक कर संजय धुबरी के जंगल मे पहुंच गया था। जिसे रेस्क्यू कर बांधवगढ़ लाया गया। प्रबंधन इस बात से खुश था कि उसे एक हांथी मुफ्त मे मिल गया है, जिसका इस्तेमाल पार्क के कामो मे किया जायेगा, परंतु उन्हे पता नहीं था यह गलती आगे जाकर भारी पडऩे वाली है। कुछ ही दिनो मे अपने सदस्यों को खोजते-खोजते कुछ और हांथी आ गये। फिर तो उनके झुण्ड पहुंचने लगे। धीरे-धीरे इनकी तादाद 30 से 35 हो गई। यहां के घने जंगल और भोजन का विशाल भंडार अतिथियों को इतना भाया कि वे फिर कभी वापस ही नहीं लौटे। वर्तमान मे हाथियों की संख्या बढ़ कर करीब पांच दर्जन हो गई है।
ग्रामीणो मे भारी नाराजगी
क्षेत्र मे जंगली हाथियों के उत्पात से लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इनके कई झुण्ड हैं, जिनमे से कुछ इतने मदमस्त हैं कि वे कभी बस्तियों मे घुस कर उत्पात मचाना शुरू कर देते हैं। इन्ही मे से एक दंतेल हांथी भी है, जिसका पूरे क्षेत्र मे भारी आतंक है। पिछले दिनो यह बिझरिया स्थित पलाश कोठी मे आ धमका और वहां लगे पेड़, पौधे उखाडऩे लगा। कर्मचारियों और ग्रामीणो द्वारा शोर-शराबा करने से वह चला गया, परंतु थोड़ी ही देर मे फिर से वापस आ गया और होटल के मैनेजर पर हमला कर दिया। इस घटना मे मैनेजर बुरी तरह घायल हो गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब दो वर्षो से इस हांथी ने उनकी नाक मे दम कर रखा है। ग्रामीणो ने साफतौर पर कहा कि यदि समस्या का स्थाई समाधान नहीं किया गया, तो आत्मसुरक्षा मे वे स्वयं कोई न कोई इलाज ढूढेंगे।
तो नहीं रहेंगे बाघ
जिले के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं विख्यात वन्यजीव विशेषज्ञ लाल केके सिंह का दावा है कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क मे कभी भी हाथियों की मौजूदगी के साक्ष्य नहीं पाये गये। इनका आना अन्य जीवों के लिये बेहद हानिकारक है। जंगली हांथी उद्यान के जंगलों को नष्ट करने के सांथ जनहानि कर रहे हैं। इन्ही की वजह से बाघों को बार-बार अपना ठिकाना बदलना पड़ रहा है। यदि जल्दी ही हाथियों को बाहर नहीं किया गया तो टाईगर यहां से पूरी तरह समाप्त हो सकते हैं।
वहीं बांधवगढ़ के उप संचालक पीके वर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय उद्यान मे जान-माल की सुरक्षा के सांथ बाघों और हाथियों के संरक्षण हेतु उच्च स्तरीय पर विमर्श चल रहा है। जिन राज्यों मे ऐसी स्थिति है, वहां आयोजित सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यशालाओं मे पार्क के अधिकारी शामिल हो रहे हैं। जिसका सकारात्मक असर जल्दी ही दिखाई देगा। ताला और आसपास के इलाकों मे लोगों की परेशानी का सबब बने दंतेल हांथी को पालतू बनाने की अनुमति पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ द्वारा प्रोजेक्ट एलीफेंट से मांगी गई है। इस संबंध मे कार्यवाही जारी है।