सौभाग्यशाली हैं मध्यप्रदेश के निवासी

जिले मे मनाई गई राज्य स्थापना की वर्षगांठ, कलेक्टर ने किया ध्वजारोहण
मानपुर/रामाभिलाष त्रिपाठी। देश का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश का राष्ट्र के नवनिर्माण मे महत्वपूर्ण योगदान है। 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व मे आने के बाद से लेकर अब तक मप्र ने विकास के नये सोपान तय किये हैं। हम सब का सौभाग्य है कि हम एक ऐसे प्रदेश के वासी हैं, जो दुर्लभ वन, वन्य जीव, जीवन रक्षक जड़ी-बूटियों और मूल्यवान खनिज संपदा से परिपूर्ण है। यहां जीवनदायिनी, पाप नाशनी मां नर्मदा का उद्गम स्थान है, जो अपने वातसल्य और अमृत रूपी जल से पूरे प्रदेश को सींचते हुए गुजरती हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह कि सौहार्द और भाईचारा यहां की महान संस्कृति है। इसीलिये इसे शांति का टापू भी कहा जाता है। उक्ताशय के उद्गार कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने कल मानपुर मे मप्र स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम मे व्यक्त किये।
अक्षुण्य रखें संस्कृति और परंपरा
राज्य के 65वें स्थापना दिवस पर कलेक्टर द्वारा मानपुर मे ध्वजारोहण कर जिलेवासियों को बधाई और शुभकामनायें प्रेषित की। इस मौके पर उन्होने कहा अपनी संस्कृति और परंपरा को अक्षुण्य रखना वर्तमान पीढ़ी का दायित्व होता है। इसे ध्यान मे रखते हुए सभी नागरिक निष्ठा के सांथ कर्तव्यों का निर्वहन कर राज्य के विकास मे सहभागी बने। इस अवसर पर एसडीएम मानपुर सिद्दार्थ पटेल, तहसीलदार मानपुर रमेश परमार, नायब तहसीलदार अनुपम पाण्डेय, राजस्व निरीक्षक, पटवारी सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे।
अपर कलेक्टर ने फहराया तिरंगा
मध्यप्रदेश स्थापना दिवस पर संयुक्त कलेक्ट्रेट भवन मे अपर कलेक्टर अशोक ओहरी ने ध्वजारोहण कर तिरंगे को सलामी दी। इस मौके पर संगीतमय राष्ट्रगान, वंदेमातरम तथा मध्यप्रदेश का गायन किया गया। इसी तरह पाली तहसील में भी ध्वजारोहण किया गया। जिसमे एसडीएम बांधवगढ अनुराग सिंह, एसडीएम पाली नेहा सोनी सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे।
ऐसे हुआ राज्य का गठन
गौरतलब है कि राज्यों के पुर्नगठन के फलस्वरूप 1 नवंबर, 1956 को नये मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ। इस प्रदेश का पुर्नगठन भाषीय आधार पर किया गया था। राज्य का गठन तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ। इसे पहले यह हिस्सा मध्य भारत के नाम से भी जाना जाता था। प्रदेश के गठन के साथ ही इसकी राजधानी औऱ विधानसभा का चयन भी कर लिया गया। भोपाल को मध्यप्रदेश की राजधानी के रूप मे चुन लिया गया। राजधानी बनने के बाद 1972 मे भोपाल को जिला घोषित कर दिया गया।
भोपाल ऐसे बनी राजधानी
राजधानी के लिए राज्य के कई बड़े शहरों मे आपसी लड़ाई चल रही थी। सबसे पहला नाम ग्वालियर फि र इंदौर का गूंज रहा था। इसके साथ ही राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम भी सुझाया था लेकिन भोपाल मे सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त भवन होने की वजह से भोपाल को मध्यप्रदेश की राजधानी के तौर पर चुना गया था। यह भी कहा जाता है कि भोपाल के नवाब के हैदराबाद से मिल कर भारत का विरोध करने की मंशा को जान कर तथा देश के हृदय स्थल मे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए भी भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया।

 

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