सूना रहा बांधवाधीश का दरबार

रीवा रियासत के युवराज ने की पूजा-अर्चना, मंत्री सुश्री मीना सिंह ने किये दर्शन

कोरोना के चलते पहली बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बांधवगढ़ मे नहीं भरा मेला

उमरिया। कई सौ साल बाद श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बांधवाधीश महाराज के दरबार मे इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं हुआ। हलांकि रीवा रियासत के युवराज एवं विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा पारंपरिक रूप से किले पर स्थित श्रीराम-जानकी मंदिर पहुंच कर उनके सहित लड्डू गोपाल और शालिग्राम भगवान की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। उनके सांथ त्रिभुवन प्रताप सिंह, सरपंच ताला रतिभान सिंह सहित अन्य लोग मौजूद थे। गौरतलब है कि देश मे फैल रहे कोरोना संक्रमण को देखते हुए कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने जन्माष्टमी पर मेला कार्यक्रम आयोजित न करने संबंधी दिशा-निर्देश दिये थे। इस मौके पर सिर्फ पांच लोगों को ही मंदिर मे जा कर पूजा-अर्चना करने की इजाजत दी गई थी।
टूटी सैकडों साल पुरानी प्रथा
बांधवगढ़ मे मेले का चलन जितना पुरातन है उतनी ही पुरानी यहां की प्रथायें भी हैं। उनमे से एक यह कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर प्रतिवर्ष रीवा नरेश द्वारा ही किले पर बिराजे बांधवाधीश महाराज की प्रथम पूजा की जाती रही है। जानकारों का मानना है कि रीवा रियासत के जितने भी राजा हुए वे सभी हर वर्ष इस प्रथा का निर्वाह करने जरूर आये। इस दौरान भगवान के दर्शन उपरांत मेले मे आई प्रजा को भी अपने राजा के दीदार हो जाया करते थे।
तानसेन की कृष्णभक्ति ने बढ़ाई ख्याति
इतिहासकारों का मत है कि बांधवगढ़ मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान की पूजा-अर्चना का इतिहास हजारों साल पुराना है परंतु संगीत सम्राट तानसेन के यहां आने के बाद यह आयोजन और भी वृहद होता चला गया। कहा जाता है कि उनकी कृष्णभक्ति से ही इसे बड़ा स्वरूप मिला। धीरे-धीरे जन्माष्टमी पर हजारों की संख्या मे लोग जुडऩे लगे। सिर्फ उमरिया ही नहीं, रीवा, कटनी, सतना, शहडोल आदि से भी श्रद्धालुओं की मेले मे आमद होने लगी। धीरे-धीरे इस आयोजन की ख्याति ऐसी फैली कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर यहां पहुंचने वालों की संख्या सैकड़ों से लाखों मे हो गई।
डोल ग्यारस तक चलता है पर्व
बताया जाता है कि इस क्षेत्र मे भगवान श्री कृष्ण की भक्ति की विशेष महत्ता है। मानपुर की तराई मे बसे कई गावों मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से शुरू हुआ कार्यक्रम डोल ग्यारस तक चलता है। इस दौरान भगवान के डोल की स्थापना की जाती है। दस दिनो तक उनकी आराधना और ग्यारहवें दिन डोल विसर्जित होने के बाद ही त्यौहार का समापन होता है।
महाराज की तरफ से होता था प्रबंध
इलाके के बुजुर्गो का कहना है कि बांधवगढ़ मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर होने वाले सभी आयोजनो का प्रबंधन सैकड़ों सालों से रीवा महाराज की ओर से ही किया जाता था। इतना ही नहीं नेशनल पार्क का हिस्सा बनने के बाद भी बांधवगढ़ मे सारा कुछ रीवा राज्य द्वारा ही संचालित होता था। इसके कई वर्ष बाद मेले का इंतजाम प्रशासन और वन विभाग द्वारा किया जाने लगा। तभी से सारे कार्यक्रम सीमित होने लगे, इसके सांथ ही मेले की अवधि भी तीन दिन से घटा कर एक दिन कर दी गई।

घरों मे मना गोविंद का जन्मोत्सव
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर घरों मे पूर्व की तरह आयोजन किये गये। दिन मे पुरूषों और महिलाओं ने वृत रखा। अर्धरात्रि को बड़े भी भाव के सांथ गोविंद का जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके भजन-कीर्तन भी हुए। कोरोना के कारण यातायात थाने मे सीमित आयोजन हुआ परंतु स्कूलों तथा अन्य स्थानो पर कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हुए।

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