सिकल सेल के 200 मरीज चिन्हित

जिले मे अब तक 18000 लोगों की जांच, तीनो ब्लाकों मे शुरू किया अभियान
बांधवभूमि, उमरिया
जिले मे घातक बीमारी सिकल सेल के करीब 200 मरीज चिन्हित किये गये हैं। जिन्हे सलाह और उपचार दिया जा रहा है। वहीं अब तक 18000 से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरके मेहरा ने बताया कि इस रोग का मुख्य कारण जन्मजात रक्त की विकृति है। इसमे एक वाहक होता है, जबकि दूसरा पीडि़त। यदि दो वाहक आपस मे विवाह करते हैं, तो उनके बच्चे पीडि़त पैदा होते हैं। ऐसे मे सिकल सेल से निपटने के लिये जांच और जागरूकता जरूरी है। डॉ. मेहरा ने बताया कि इस खतरनाक रोग से लोगों को सुरक्षित करने सर्वप्रथम आदिवासी बाहुल्य पाली जनपद मे अभियान शुरू किया गया था, जिसे अब सभी जनपदों मे लागू कर दिया गया है। उन्होने कहा कि यदि युवक या युवती मे से कोई भी इस बीमारी से पीडि़त है, तो उनकी शादी नहीं कराई जानी चाहिये। सीएमएचओ ने नागरिकों से जांच के उपरांत रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही बच्चों का विवाह करने की अपील की है।
इलाज और जीवनशैली मे सुधार
स्वास्थ विभाग जिले मे पॉजिटिव पाये गये रोगियों को इलाज के सांथ उन्हे संतुलित जीवनशैली की जानकारी दे रहा है। सीएमएचओ डॉ. आरके मेहरा के मुताबिक मरीजों को कम से कम महीने मे एक बार बुला कर उनसे चर्चा की जा रही है। खून की कमी से निपटने के लिये ऐसे लोगों को फोलिक एसिड तथा हाईड्रोक्सीयूरिया लेने की सलाह दी जा रही है। उन्होने बताया कि हाईड्रोक्सीयूरिया का सेवन करने से व्यक्ति को साल मे 1 से 2 बार खून की जरूरत पड़ेगी, अन्यथा उन्हे 12 बार खून चढ़वाना पड़ सकता है।
अल्पायु मे हो जाती है मौत
सही उपचार नहीं होने से सिकल सेल के पीडि़त व्यक्ति की अल्पायु मे ही मौत हो जाती है। ऐसा मरीज अधिकतम 23-24 वर्ष ही जी सकता है। जबकि बीमार व्यक्ति सही उपचार लेने के सांथ यदि नियमो का पालन करे तो उसका जीवन 50 तक हो सकता है। डॉ. आरके मेहरा ने बताया कि विभाग द्वारा सभी मरीजों का एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया जा रहा है। जिससे डाक्टरों से उनकी नियमित चर्चा होती रहे, और उनके सांथी भी इससे अवगत हों।
क्या है सिकल सेल
चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक सिकल सेल विकृति एक आनुवंशिक रोग है। विश्व के सात फीसद लोग इससे प्रभावित हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले इस रोग मे गोलाकार लाल रक्त कण (हीमोग्लोबीन) हंसिये के रूप मे परिवर्तित होकर नुकीले और कड़े हो जाते हैं। ये रक्त कण शरीर की छोटी रक्तवाहिनी (शिराओं) मे फंस कर लिवर, तिल्ली, किडनी, मस्तिष्क आदि अंगो के रक्त प्रवाह को बाधित कर देते हैं। रक्त कणों के जल्दी-जल्दी टूटने से रोगी को सदैव रक्त की कमी (एनीमिया) रहती है। इसलिए इस रोग को सिकल सेल एनीमिया भी कहा जाता है।
लंबे समय से बनी रही भ्रांतियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार अफ्रीका मे प्रतिदिन 10 हजार सिकल ग्रस्त बच्चे पैदा होते हैं। जिनमें से 60 फीसद एक वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते और बाकी 20 वर्ष के पहले मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी अफ्रीका, सऊदी अरब, एशिया के कुछ देशों के अलावा भारत मे उन स्थानो पर ज्यादा पाई जाती है, जहां मलेरिया का प्रकोप अधिक है। विशेषकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित हैं। लंबे समय तक इस बीमारी पर भ्रांतियां बनी रहीं और अशिक्षा व कबीलाई मान्यताओं के चलते इसे ईश्वर का अभिशाप और पापों का फल माना गया। कहीं-कहीं इस रोग को समागम या छुआछूत से हुई बीमारी माना जाता रहा है।

Advertisements
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *