सांसदों और विधायकों के खिलाफ केसों के देरी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

 10-15 साल से लंबित, चार्जशीट तक दायर नहीं की
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों को सांसदों और विधायकों के खिलाफ केसों की जांच में देरी करने पर जमकर फटकार लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले 10-15 साल से लंबित हैं, और चार्जशीट तक दायर नहीं की गई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने पूछा ऐसा क्यों है? कोर्ट ने एजेंसियों से कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा प्रवर्तन निदेशालय केवल संपत्तियों को कुर्क कर रहा है, और कुछ नहीं किया जाता है।जस्टिस रमना ने कहा, मामलों को इस तरह लटकाए न रखकर चार्जशीट दाखिल करें। लोगों को न्याय दिलाने के लिए त्वरित परीक्षण की आवश्यकता है।
हालांकि जजों ने कहा कि हम इन शीर्ष एजेंसियों के मनोबल को गिराना नहीं चाहते हैं। इसलिए हम इन एजेंसियों के खिलाफ कुछ नहीं कहने वाले हैं, लेकिन लंबित मामलों की संख्या बहुत कुछ कहती है। कोर्ट की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने कहा कि एक मामले में एजेंसी की ओर से कहा गया है इसकी जांच 2030 में पूरी होने की संभावना है। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने नाराजगी जाहिर की।
तीनों न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रमना,न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि हमारी तरह एजेंसियों को भी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ता है। कोई भी बड़ा या छोटा मामला हो लोग सीबीआई जांच ही कराना चाहते हैं। हम समझते हैं कि वे भी अदालतों की तरह काम का काफी बोझ झेल रहे हैं। कुछ मामलों में उन्हें विशेष प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिसमें संसाधनों की आवश्यकता होती है।
मुख्य न्यायाधीश रमना के अनुसार, चूंकि मामलों में जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं,इसकारण विशेष शर्तों की आवश्यकता होती है क्योंकि वेअपने पद का दुरुपयोग भी कर सकते हैं,इसकारण हमने विशेष शर्तें लगाई हैं। हमने पिछली सुनवाई में कहा था कि इन मामलों को उच्च न्यायालय की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिया जा सकता।

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