सरकार नहीं देश रहे सुरक्षित

सरकार नहीं देश रहे सुरक्षित

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष संपादकीय, राजेश शर्मा

अंतहीन पीड़ा संघर्ष और लाखों कुर्बानियों की कीमत पर आज के दिन हमारे देश को संप्रभुता हांसिल हुई थी। सदियों तक लुटने के बाद मिला लाचार भारत भले ही भूंख और गरीबी से तंगहाल था, परन्तु अब उसे अपनी किस्मत का फैंसला खुद करने का हक मिल गया था, यह एहसास उन सारी तकलीफों पर भारी था। विभिन्न जातियों, धर्मो और भाषाओं वाली जनता राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थी। हमारे पूर्वज भलिभांति जानते थे कि इसी सूत्र के सांथ, एकजुट हो कर लड़े गये युद्ध ने ही यह ऐतिहासिक सफलता दिलाई है, इसे आगे भी बरकरार रखना है।

वो ये समझते थे कि आक्रमणकारियों ने जात-पात और अगड़े-पिछड़े की खाई खोद कर वर्षो तक उन्हे आपस मे लड़ाये रखा। वो समझ चुके थे कि इसका फायदा केवल एक व्यक्ति को होता है, और नुकसान सब को। इसी भावना और बेहद सधे कदमो के सांथ भारत ने अब तक विकास के सोपान तय किये हैं।

देश को चलाने की पहली शर्त ही परस्पर सम्मान, समन्वय और संतुलन है, जिसे साधे बगैर आगे का रास्ता कठिन और जोखिम भरा है। आज का दिन वर्तमान पीढ़ी को भारत की गुलामी से आजादी तक के सफर को याद करने का अवसर देता है, ताकि उन गल्तियों से बचा जा सके, जिन्होने कई पीढिय़ों को तबाह कर दिया। आखिर कौन सा कारण था कि विदेशों से आये मुट्ठीभर लोगों ने नसिर्फ आर्यावर्त की सैकड़ों रियासतों को अपना आधीन बना लिया, बल्कि दशकों तक उन पर राज भी करते रहे। इसका एक ही कारण था ईष्र्या, द्वेश और आपसी फूट।

देश मे बलात शासन करने वाले फिरंगियों ने भी इसी नीति को अपनाया और लोगों के बीच दुश्मनी करा कर उसमे ईधन डालते रहे ताकि आग ठंडी न पड़ सके। उनके राजपाट भी तभी तक चले, जब तक लोग बहकावे मे आते रहे। अतीत ने हमे यही सीख दी है कि विभिन्न जाति, धर्म और संस्कृति वाले इस महान देश को केवल राष्ट्रीयता ही एक सूत्र मे पिरो सकती है। यही स्वतंत्रता का आधार है। सरकार बनाना, चलाना और बचाना आसान है पर देश को सुरक्षित रखना दुष्कर। इसके लिये उसी मूलभावना का पालन  अनिर्वाय है, जिसने इसे अखण्डता प्रदान की है। इतिहास साक्षी है कि महज अपनी कुनीतियों व असफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने और सत्ता सुरक्षित रखने की कोशिशों को धर्म एवं राष्ट्र से जोडऩा तथा विकास के कठिन रास्ते को अपनाने की बजाय महज संख्याबल को साधने के लिए कमजोर वर्गों के अपमान को अपरोक्ष समर्थन देने की नीति ने दुनिया के कई देशों को बर्बाद कर दिया।

अन्याय किसी का भी हो, न्याय उसका मजहब और आबादी देख कर नहीं किया जा सकता। देश के पूवोत्तर राज्य मिजोरम मे जिस तरह से नग्न महिलाओं की रैली निकाली गई, उनके आगे और पीछे चल रही वहशी, दंरिदों की भीड़ असहाय अबलाओं के शरीर से खेलती हुई। फिर उनका सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या की घटना सदियों से न्याय और राजधर्म के ध्वजवाहक, दुनिया के महान लोकतंत्र भारत मे होना नकेवल हमे बल्कि हमारे पूर्वजों को भी शर्मसार करती है।  हमे याद रखना होगा कि आतंकवाद तथा उग्रवाद का जन्म असंतोष और उत्पीडऩ की कोख से होता है। यह वो रास्ता है, जिसका अंत केवल तबाही है।

स्वाधीनता की 76वीं वर्षगांठ पर आईये हम सभी देशवासी स्वच्छ मानसिकता के सांथ भारत मां की एकता और अखण्डता को अक्षुण्य रखने तथा उसका गौरव बढ़ाने का संकल्प लें। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई, जयहिंद  

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