भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी-दलितों तक बढ़ाई पहुंच
नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों में विपक्षी दलों ने खासतौर पर जेडीयू, आरजेडी, सपा जैसे दलों ने जातीय जनगणना को लेकर भाजपा सरकार को खूब घेरा है। भाजपा सरकार को दलित और ओबीसी विरोध बताने की कोशिश की है। अब भाजपा ने भी पलटवार करना शुरू कर दिया है। उत्तर भारत में खासतौर पर विपक्ष की चाल को फेल करने के लिए भाजपा ने बड़ी रणनीति बनाई है। इसी के चलते भाजपा ने यूपी में पिछड़े वर्ग से आने वाले ओम प्रकाश राजभर और बिहार में महादलित समुदाय से आने वाले जीतनराम मांझी को अपने पाले में कर लिया है। आने वाले दिनों में भाजपा जातीय समीकरण साधने के लिए ऐसे ही कई छोटे दलों को अपने साथ ला सकती है। इसे कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों द्वारा ओबीसी आरक्षण बढ़ाने और जाति जनगणना की मांग के जवाब में भाजपा की चाल बताई जा रही है। केंद्र की भाजपा सरकार अब तक अन्य पिछड़ा वर्ग की जनगणना की मांग पर चुप है। २०१४ और २०१९ में पिछड़ा वर्ग ने खुलकर भाजपा का साथ दिया था। ऐसे में इस बार भी भाजपा इन वोटर्स को नाराज नहीं करना चाहती है। यही कारण है कि इन अलग-अलग जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई छोटे दलों को भाजपा ने खुद के साथ जोड़ना शुरू कर दिया है। यूपी में जहां ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद जैसे पिछड़े वर्ग से आने वाले नेता भाजपा के साथ खड़े हैं। वहीं, बिहार में जीतन राम मांझी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं ने भाजपा को समर्थन दिया है।
सपा-बसपा के कई नेताओं को भी तोड़ने की कोशिश
२०१४ में भाजपा ने यूपी के लगभग हर हिस्से में अपना परचम लहराया। २०१९ में भी कुछ यही नतीजे देखने को मिले थे। हालांकि, सपा और सुभासपा गठबंधन ने २०२२ विधानसभा चुनाव के दौरान जरूर पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा को झटका दे दिया। ऐसे में अब फिर से पूर्वांचल में अपना दबदबा कायम करने के लिए भाजपा ने एक तरफ ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन किया है तो दूसरी ओर भाजपा छोडक़र सपा में गए पिछड़े वर्ग के नेता दारा सिंह चौहान को फिर से पार्टी में शामिल करा लिया। ये सपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। पश्चिमी यूपी में एसपी-आरएलडी गठबंधन ने २०२२ विधानसभा चुनाव के दौरान जाट वोटों को विभाजित करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की थी। सूत्रों का कहना है कि अब भाजपा आरएलडी को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है। उधर, बिहार में भी भाजपा दलित और पिछड़े वर्ग से जुड़ी अलग-अलग जातियों की पार्टियों को साथ लाकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन को फेल करने की कोशिश में है।
बेंगलुरु में विपक्ष का महासम्मेलन आज से, भाजपा के खिलाफ 24 पार्टियां होंगी एकजुट
2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में लगा है। इसी क्रम में 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की दूसरे राउंड की बैठक होनी है। इस बैठक में भाजपा के खिलाफ 24 दलों के एकजुट होने की संभावना है। कहा तो ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इस बैठक में शामिल होंगी।नीतीश कुमार पिछले साल भाजपा से नाता तोडक़र महागठबंधन में शामिल हो गए थे। इसके बाद से ही विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में अलग अलग राज्यों में जाकर विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी की थी। इसके बाद उन्होंने 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बड़ी बैठक बुलाई थी। इस महाबैठक में 15 दलों के 27 नेता शामिल हुए थे।बताया जा रहा है कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष का कुनबा इस बार और बड़ा होने वाला है। बेंगलुरु में 17-18 जुलाई को होने वाली बैठक में एमडीएमके, केडीएमके, वीसीके, आरएसपी, मुस्लिम लीग, केरला कांग्रेस (जोसफ), केरला कांग्रेस (मणि) भी शामिल होंगी। ऐसे में इस बैठक में कुल 24 पार्टियों के शामिल होने की संभावना है।
मल्लिकार्जुन खडग़े ने भेजा न्योता
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने बेंगलुरु में होने वाली बैठक के लिए सभी विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा है। मीटिंग 17 जुलाई को शाम 6 बजे सभी के लिए डिनर रखा गया है। वहीं 18 जुलाई को 11 बजे से बैठक शुरू होगी। कर्नाटक के डिप्टी सीएम शिवकुमार ने हाल ही में बताया था कि खडग़े ने विपक्षी नेताओं के साथ साथ सोनिया गांधी से भी बैठक में शामिल होने की अपील की है। शिवकुमार ने बताया कि उन्हें संदेश मिला है कि सोनिया गांधी भी बैठक में शामिल होंगी।
कितने बदले राजनीतिक समीकरण
पटना में हुई महाबैठक के करीब 25 दिन बाद दूसरी बैठक होने जा रही है। लेकिन इस दरमियान शरद पवार की पार्टी एनसीपी की कहानी पूरी तरह बदल गई। शरद पवार के भतीजे अजित पवार बगावत कर महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए। उनका दावा है कि उनके साथ एनसीपी के 40 विधायक हैं। इतना ही नहीं अजित पवार ने एनसीपी पर भी दावा ठोक दिया है। एनसीपी की ये लड़ाई चुनाव आयोग में पहुंच गई है।