सम्मेद शिखर को बचाने मुनि ने दिया प्राणों का बलिदान

सरकार के फैसले के खिलाफ 09 दिन से आमरण अनशन पर थे
जयपुर । झारखंड में जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटक स्थल बनाए जाने का विरोध कर रहे जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने मंगलवार को जयपुर में प्राण त्याग दिए। जैन मुनि सुज्ञेयसागर झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ पिछले 09 दिन से आमरण अनशन पर थे। सुज्ञेयसागर जयपुर के सांगनेर में 25 दिसंबर से आमरण अनशन पर थे। मंगलवार सुबह उनकी डोल यात्रा सांगानेर के संघीजी मंदिर से निकाली गई। इस दौरान आचार्य सुनील सागर सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग मौजूद रहे। जैन मुनि को जयपुर में ही समाधि दी जाएगी। बात दें कि वे झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ 72 साल के सुज्ञेयासागर पिछले 10 दिन से आमरण अनशन पर थे। मंगलवार सुबह उनकी डोल यात्रा सांगानेर संघीजी मंदिर से निकाली गई। इसमें आचार्य सुनील सागर सहित बड़ी संख्या में जैन और अन्य समाज के लोग मौजूद रहे। दरअसल झारखंड की हेंमत सोरेन सरकार ने गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटक स्थल घोषित किया है। सोरेन सरकार के इस फैसले के खिलाफ देशभर में जैन समाज के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। पारसनाथ पहाड़ी दुनिया भर के जैन धर्म के लोगों में सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर के तौर पर प्रसिद्ध है।
अखिल भारतीय जैन बैंकर्स फोरम के अध्यक्ष भागचन्द्र जैन ने बताया कि मुनीश्री ने सम्मेद शिखर को बचाने के लिए बलिदान दिया है। वे उससे जुड़े हुए थे। जैन मुनि सुनील सागर ने कहा कि सम्मेद शिखर हमारी शान है। मंगलवार को 6 बजे मुनि सुज्ञेयसागर महाराज का निधन हुआ। जब उन्हें मालूम पड़ा था कि सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किया गया है तब से वे इसके विरोध में लगातार उपवास पर थे। राजस्थान की इस भूमि पर धर्म के लिए अपना समर्पण किया है। अब मुनि समर्थ सागर ने भी अन्न का त्याग कर तीर्थ को बचाने के लिए पहल की है। मुनि सुज्ञेयसागर का जन्म जोधपुर के बिलाड़ा में हुआ था लेकिन उनका कर्मक्षेत्र मुंबई का अंधेरी रहा। उन्होंने आचार्य सुनील सागर महाराज से गिरनार में दीक्षा ली थी। बांसवाड़ा में मुनि दीक्षा और सम्मेद शिखर में क्षुल्लक दीक्षा ली थी। इस बीच जयपुर में जैन मुनि आचार्य शंशाक ने कहा कि सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने को लेकर जैन समाज अभी अहिंसक तरीके से अभी आंदोलन कर रहा है आगामी दिनों में आंदोलन को उग्र भी किया जाएगा।
झारखंड का हिमालय माने जाने वाले इस स्थान पर जैनियों का पवित्र तीर्थ शिखरजी स्थापित है। इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहां पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं। जंगलों पहाड़ों के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए नौ किलोमीटर की यात्रा तय कर शिखर पर पहुंचते हैं। इस मामले पर सम्मेद शिखर में विराजित मुनिश्री प्रमाण सागरजी ने कहा कि सम्मेद शिखर इको टूरिज्म नहीं इको तीर्थ होना चाहिए। झारखंड सरकार पूरी परिक्रमा के क्षेत्र और इसके 5 किलोमीटर के दायरे के क्षेत्र को पवित्र स्थल घोषित करे ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे। जैन समाज को आशंका है कि पर्यटन स्थल बनने के बाद यहां मांस-मदिरा आदि बिकने लगेगा यह समाज की भावना-मान्यता के खिलाफ है। 2019 में केंद्र की मोदी सरकार ने सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इसके बाद झारखंड सरकार ने एक संकल्प जारी कर जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इस पर्यटन स्थल घोषित किया।

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