समाधि मे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद

दूध-घी से स्नान, 108 कलश से जलाभिषेक, दर्शन को पहुंचे 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालु
नरसिंहपुर। जय गुरुदेव के जयघोष…भजन-कीर्तन…और वैदिक मंत्रोच्चार। यह दृश्य था शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की अंतिम विदाई का। 50 हजार से अधिक शिष्य, अनुयायी और श्रद्धालु अंतिम दर्शन करने पहुंचे। सोमवार दोपहर करीब 3.45 बजे पालकी से उनका समाधि यात्रा समाधि स्थल पर पहुंची। सबसे पहले शंकराचार्य को वैदिक मंत्रोच्चार कर समाधि स्थल पर बैठाया गया। समाधि के चारों ओर हजारों की संख्या में भक्त नम आंखों से अपने गुरुदेव को निहार रहे थे। उनकी पार्थिव देह पर पुष्प अर्पित किए गए। फिर शंख से करीब 7 लीटर दूध से स्नान कराया गया। 108 कलश से जलाभिषेक किया गया। घी से स्नान के बाद चंदन का लेप लगाया गया। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इस दौरान बराबर रामधुन गूंजता रहा। तिरंगा ओढ़ाकर राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई। बता दें कि स्वरूपानंद सरस्वती का 98 वर्ष की आयु में रविवार को निधन हो गया था। रविवार को उन्होंने झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर करीब साढ़े 3 बजे अंतिम सांस ली थी।
उत्तराधिकारी घोषित
इससे पहले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारियों के नाम सोमवार दोपहर घोषित कर दिए गए। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है। उनके नामों की घोषणा शंकराचार्य जी की पार्थिव देह के सामने की गई। ज्योतिष पीठ का प्रभार अभी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के पास है। जबकि द्वारका पीठ का प्रभार दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती को मिला हुआ है।
एमपी में 3 दिन के राजकीय शोक की मांग
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देवलोकगमन पर मध्यप्रदेश में 3 दिन के राजकीय शोक की मांग की है। उन्होंने कहा कि भारत की गुलामी का प्रतीक इंग्लैंड की महारानी नहीं रही तो राष्ट्रीय शोक और झंडा झुका दिया। आज जब सनातन धर्म के ध्वजवाहक पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का देवलोकगमन हुआ तो राष्ट्रीय शोक तो दूर की बात राजकीय शोक की घोषणा भी नहीं की गई। जबकि पूज्य महाराज स्वतंत्रता संग्राम सैनानी भी थे और स्वतंत्रता संग्राम में दो बार जेल भी गए। हमारी मांग है कि उनकी समाधि के बाद सरकार 3 दिन का राजकीय शोक घोषित करें।
साधुओं को कैसे देते हैं भू-समाधि
शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है। भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाती है। अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दी जाती है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू-समाधि उनके आश्रम में दी गई। शंकराचार्य जी के एक भाई छिंदवाड़ा में पुलिस विभाग में थे। शंकराचार्य जी 9 वर्ष की आयु में अपने भाई-भाभी के साथ यहीं रहे थे। इस दौरान एक दिन भाभी ने उन्हें दाना पिसाने के लिए आटा चक्की भेजा था। जहां खेल-खेल में वे अनाज पिसाना भूल गए। जब शाम को घर वापस पहुंचे तो भाभी ने उन्हें दो थप्पड़ मार दिए। इस बात से नाराज होकर स्वामी जी घर छोड़ दिया था।
Advertisements
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *