समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के विरोध मे मोदी सरकार

सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा दाखिल किया, कहा- यह भारतीय परंपरा के मुताबिक नहीं

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है। मोदी सरकार का कहना है कि समान सेक्स संबंध की तुलना भारतीय परिवार की पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों के अवधारणा से नहीं की जा सकती। विवाह की धारणा विपरीत सेक्स के मेल को मानती है। केंद्र ने कहा कि प्रारंभ में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समान-लिंग वाले व्यक्तियों की ओर से जीवनसाथी के रूप में एक साथ रहना, जो अब डिक्रिमिनलाइज किया गया है। यह पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार इकाई अवधारणा के साथ तुलनीय नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय सहित देश के सभी उच्च न्यायालयों में लंबित समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं को एक साथ सम्बद्ध करते हुए अपने पास स्थानांतरित कर लिया था। न्यायालय ने कहा था कि केन्द्र की ओर से पेश हो रहे वकील तथा याचिका दायर करने वालों की अधिवक्ता अरुंधति काटजू साथ मिलकर सभी लिखित सूचनाओं, दस्तावेजों और पुराने उदाहरणों को एकत्र करें, जिनके आधार पर सुनवाई आगे बढ़ेगी। पीठ ने छह जनवरी के अपने आदेश में कहा था, शिकायतों की सॉफ्ट कॉपी (डिजिटल कॉपी) पक्षकार आपस में साझा करें और उसे अदालत को भी उपलब्ध कराया जाए। सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए और मामलों में निर्देश के लिए 13 मार्च, 2023 की तारीख तय की जाए। विभिन्न याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने पीठ से अनुरोध किया था कि वह इस मामले में आधिकारिक फैसले के लिए सभी मामलों को अपने पास स्थानंतरित करे और केन्द्र भी अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट में ही दे।
गौरतलब है कि 2018 में आपसी सहमति से किए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ भी शामिल थे।

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