नई दिल्ली। यह भारत देश हजारों वर्षों से संतों, ऋषियों, मुनियों व आचार्यों की एक महान परंपरा की धरती रही है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सात वर्षों में 18000 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की है। यह पदयात्रा दुनिया के तीन देशों की थी। इसके जरिए आचार्यश्री ने वसुधैव कुटुम्बकम् के भारतीय विचार को विस्तार दिया है। इस पदयात्रा ने देश के बीस राज्यों को एक विचार से, एक प्रेरणा से जोड़ा है। जहां अहिंसा है, वहीं एकता है, जहां एकता है, वहीं अखण्डता है, जहां अखण्डता है, वहीं श्रेष्ठता है। मैं मानता हूं, आपने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र को आध्यात्मिक संकल्प के रूप में प्रसारित करने का काम किया है। उपरोक्त उदगार देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने व्यक्त किए। मौका था शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा सप्तवर्षीय अहिंसा यात्रा संपन्नता समारोह का। 9 नवंबर 2014 को लालकिला से प्रारम्भ हुई इस अहिंसा यात्रा का आज 27 मार्च को तालकटोरा स्टेडियम में भव्य समापन हुआ जिसमें वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आगे कहा कि श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्यों का मुझे हमेशा से ही विशेष स्नेह मिलता रहा है। आचार्य तुलसीजी, उनके पट्टधर आचार्य महाप्रज्ञजी और अब आचार्यश्री महाश्रमणजी का मैं विशेष कृपा पात्र रहा हूं। इसी प्रेम के कारण मुझे तेरापंथ के आयोजनों से जुड़ने का सौभाग्य भी मिलता रहा है। इसी प्रेम के कारण मैंने आप आचार्यों के बीच कहा था- ‘यह तेरापंथ है, यह मेरा पंथ है। मैं जब आचार्यश्री महाश्रमणजी की इस पदयात्रा से जुड़ी जानकारी देख रहा था तो मुझे उसमें भी एक सुखद संयोग दिखा। आपने यह यात्रा 2014 में दिल्ली के लालकिले से शुरू की थी। उस वर्ष देश ने भी एक नई यात्रा शुरू की और मैंने लालकिले से कहा था-यह नए भारत की नई यात्रा है। अपनी इस यात्रा में देश के भी वही संकल्प रहे-जनसेवा, जनकल्याण। आज आप करोड़ों देशवासियों से मिलकर परिवर्तन के इस महायज्ञ में उनकी उनकी भागीदारी का शपथ दिलाकर दिल्ली आए हैं।आज आजादी के अमृतमहोत्सव काल में देश जिन संकल्पों पर आगे बढ़ रहा है, चाहे वह पर्यावरण का विषय हो, पोषण का प्रश्न हो, या फिर गरीबों के कल्याण के लिए प्रयास। इन सभी संकल्पों में आपकी बड़ी भूमिका है। मुझे पूरा भरोसा है आप संतों का आशीर्वाद देश के इन प्रयासों को और अधिक प्रभावी और सफल बनाएंगे। मैं इस यात्रा के पूर्ण होने पर आचार्यश्री महाश्रमणजी को और सभी अनुयायियों को श्रद्धापूर्वक अनेक-अनेक बधाई देता हूं। सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के उद्देश्य के साथ जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्यश्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा द्वारा भारत के 20 राज्यों में अपने उपदेशों, प्रवचनों आदि द्वारा अहिंसा की अलख जगाई। यात्रा में 18,000 किलोमीटर पैदल चलकर आचार्यजी ने नेपाल एवं भूटान की विदेश धरा को भी अपने मंगल संदेशों से जन-जन को सन्मार्ग दिखाया। यह यात्रा औपचारिक रूप में भले आज संपन्न हो रही थी किंतु शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन चरण मानव जाति के उत्थान हेतु अनवरत गतिमान रहेंगे।
सप्त वर्षीय अहिंसा यात्रा का ऐतिहासिक समापन
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