संकट मे जिले के बाघों का अस्तित्व

संकट मे जिले के बाघों का अस्तित्व

बांधवगढ़ मे एक और मौत, नये साल के पहले महीने मे हुई दूसरी घटना ने बढ़ाई चिंता

बांधवभूमि न्यूज, रामाभिलाष त्रिपाठी

मध्यप्रदेश
उमरिया
मानपुर। जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क मे एक और बाघ की मौत हो गई है। इसका शव मंगलवार को उद्यान के कल्लवाह परिक्षेत्र मे पाया गया। मृत बाघ की आयु करीब दो वर्ष बताई गई है। जानकारी के अनुसार विगत दिवस गश्ती के दौरान वन कर्मियों को चेचपुर बीट मे एक बाघ का शव मिला। जिसकी सूचना पर तत्काल विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया। एनटीसीए के प्रतिनिधि व डॉक्टर्स की टीम द्वारा घटना स्थल का निरीक्षण किया गया। सांथ ही मेटल डिटेक्टर एवं डॉग स्क्वायड टीम से आसपास के क्षेत्र की तलाशी कराई गई। वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी मे नियमानुसार पोस्टमार्टम के उपरांत शव को जलाकर नष्ट किया गया। अधिकारियों ने बताया है कि मृत बाघ के दांत और नाखून आदि सुरक्षित पाये गये। शव पर केनाईन दांत के निशान मिलने से प्रतीत होता है कि आपसी संघर्ष मे उसकी मृत्यु हुई है।

बीते साल मरे थे 13 टाईगर
नेशनल पार्क मे बाघों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हालत यह है कि एक महीने मे ही इस दुर्लभ जीव की मृत्यु के दो से तीन मामले सामने आ रहे हैं। घोषित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 मे उद्यान क्षेत्र अंतर्गत 13 बाघों की मौत हुई थी। जबकि नये साल के पहले महीने, अर्थात जनवरी मे बाघ के मौत की यह दूसरी घटना है। बांधवगढ़ मे जिस तेजी से बाघ मर रहे हैं, उससे पार्क प्रबंधन के सांथ ही जिले के वन्यजीव प्रेमी भी सकते मे हैं।

ठिकाने मे दखल की लड़ाई
जानकारों का मानना है कि जिले का बांधवगढ़ नेशनल पार्क पहले से ही बाघों की घनी आबादी के लिये जाना जाता है। ऊपर से जंगली हाथियों का कलरव उन्हे रास नहीं आ रहा। हाथियों की वजह से ही अपने भोजन की तलाश मे एक बाघ को दूसरे बाघ के इलाके मे जाना पड़ रहा है। यही वजह है कि आये दिन उनमे टेरीटोरी फाईट हो रही है। इस लड़ाई मे एक बाघ की मौत या जख्मी होना लाजिमी है। आपसी संघर्ष मे कई बार दोनो बाघ बुरी तरह घायल या विकलांग भी हो जाते हैं।

ग्रामीणो की असंतुष्टि भी समस्या
उमरिया जिला बेशकीमती खनिज के अलावा सुरम्य वन तथा दुर्लभ रॉयल बंगाल टाईगर की प्रजाति के लिये दुनिया भर मे प्रसिद्ध है। जिसने नकेवल जिले को पर्यटन के नक्शे मे प्रमुख स्थान दिलाया है, बल्कि आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त किया है। जिले के हजारों लोगों का जीवनयापन बांधवगढ पर निर्भर है। विगत कुछ वर्षो के दौरान बाघ, तेंदुआ, भालू इत्यादि जानवरों के गावों मे घुस कर जानमाल का नुकसान करने से ग्रामीणो मे लगातार रोष फैल रहा है। इतना ही नहीं वे पार्क और उसमे विचरण करने वाले वन्यजीवों को अपना शत्रु मानने लगे हैं। जानकारों का दावा है कि कई बाघों व तेंदुओं की मौत करंट तथा अन्य संदिग्ध परिस्थितियों मे होने के पीछे भी स्थानीय रहवासियों की असंतुष्टि बड़ा कारण है।

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