रेलवे की मनमानी से व्यथित जिले की जनता, गुस्से मे तब्दील हो रही निराशा
बांधवभूमि, उमरिया
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की मनमानी और उपेक्षा अब लोगों के अंदर शूल की तरह चुभने लगी है। ट्रेनो के बार-बार बंद और चालू होने तथा अत्यंत महत्वपूर्ण गाडिय़ों के वर्षो से ठप्प रहने के कारण जनमानस व्यथित है, और धीरे-धीरे यह व्यथा गुस्से मे परिवर्तित हो रही है। जनमानस मे क्षेत्र के उन नकारा जनप्रतिनिधियों के प्रति भी भारी निराशा है, जो चुनावों के समय विकास और उपलब्धियों का ढोल पीट कर वोट तो ले जाते हैं, फिर 5 सालों तक कहीं दिखाई नहीं पड़ते। हाल ही मे संपन्न त्रिस्तरीय और निकाय चुनावों मे मंहगाई के अलावा रेलवे का मुद्दा भी काफी गर्म रहा। आने वाले विधानसभा और लोकसभा मे इसका असर दिखना तय है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि मतदाता इस बार दिल्ली और भोपाल दरबार के नुमाईन्दों से मुखर हो कर निष्क्रियता का हिसाब लेने वाला है।
परिणामो पर भी दिखा असर
रेलवे की उपेक्षा और लोगों को हो रही परेशानी का असर नगरीय निकाय चुनावों मे साफ दिखाई दिया। विशेषकर उमरिया, चंदिया और नौरोजाबाद के परिणाम तो यही कहते हैं, जहां की 54 पार्षद सीटों मे से भाजपा को सारी ताकत झोंकने के बावजूद महज 22 सीटें मिलीं, वहीं सीमित संसाधनों के सांथ चुनाव मे उतरी कांग्रेस 22 सीटें जीतने मे सफल रही। उल्लेखनीय है कि जिले के नगरीय निकायों मे कुल 69 पार्षदों के लिये चुनाव हुए थे, जिनमे से भाजपा को 28 और कांग्रेस को 27 सीटें हांसिल हुई हैं। जबकि 13 सीटें निर्दलीय व अन्य के खाते मे आई हैं।
नेताओं की नेतागिरी पर सवाल
क्षेत्र के सांथ हो रहे भीषण अन्याय ने उन नेताओं की नेतागिरी पर सवाल खड़े कर दिये हैं, जो अपने आकाओं को जिताने के लिये झूठे सपने दिखाने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। चाहे चंदिया और नौरोजाबाद हो या फिर उमरिया। हर जगह भाई साहबों की भरमार है, पर इनमे से कोई भी ऐसा नहीं है, जो अपने सरकार के सामने इमानदारी से जनता के हित की बात कह सके। चाहे वह बिजली की बात हो, रेलवे या अन्य कोई समस्या। हर समय वे इसी बात से भयभीत रहते हैं कि कहीं सही बात कहने से साहब नाराज न हो जांय। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो दरबार की कुसी हांथ से छिन जायेगी। फिर जनता का क्या, आज नाराज है तो कल खुश भी हो जायेगी।
जो मिल रहा था, वह भी गया
शहडोल संभाग से हर महीने करोड़ों रूपये की कमाई करने के बावजूद रेलवे ने क्षेत्र को कोई नई सौगात तो दूर जो मिल रही थी वो सुविधायें भी छीन ली है। हालत यह है कि उमरिया स्टेशन पर अभी भी दर्जनो ट्रेनो का स्टापेज नहीं है। कहां जनता इनके ठहराव तथा नागपुर, अहमदाबाद और मुंबई के लिये नई रेल सेवाओं की मांग कर रही थी। क्या पता था कि 40 सालों से रूकने वाली सारनाथ और रीवा-बिलासपुर का स्टापेज ही छीन लिया जायेगा। पाली, चंदिया, करकेली और नौरोजाबाद की हालत तो और भी बदतर है। लोग 3 साल से चिरमिरी-कटनी शटल और चिरमिरी-चंदिया पैसेंजर ट्रेन चलने की राह देख रहे हैं। ये ट्रेने गरीब और मध्यम वर्ग का एकमात्र सहारा थीं। इनके बंद होने से लोगों को हर महीने हजारों रूपये की चपत लग रही है।
शूल की तरह चुभ रही उपेक्षा
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