शहरों के बाद जंगलों से भी खत्म होने की कगार पर गिद्ध

शहरों के बाद जंगलों से भी खत्म होने की कगार पर गिद्ध

पालतू मवेशियों के इलाज मे प्रतिबंधित दवा का उपयोग बना पक्षियों के अस्तित्व का संकट

बांधवभूमि न्यूज, रामाभिलाष त्रिपाठी

मध्यप्रदेश

उमरिया
मानपुर। वर्षो से बांधवगढ़ नेशनल पार्क की शान रहे गिद्धों के लिये बीमार मवेशियों तथा जानवरों के इलाज मे दी जाने वाली दवा मुसीबत का सबब बन गई है। शहरी क्षेत्रों से नदारत हुई यह प्रजाति अभी तक इंसानी बस्तिायों से दूर केवल जंगलों मे ही सुरक्षित थी, परंतु वहां भी यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर हो चली है। जानकारों का मानना है कि यदि इस संबंध मे कोई गंभीर पहल नहीं हुई तो वह दिन दूर नहीं जब उद्यान इन दुर्लभ पक्षियों से पूरी तरह खाली हो जायेगा।
बताया जाता है कि पालतू मवेशियों के उपयोग मे आने वाली दवायें उनके मरने के बाद ज्यादा खतरनाक हो जाती है। जानवरों की मृत्यु के बाद, जब गिद्ध इनको अपना आहार बनाते हैं तो मृत जानवरों के शरीर मे मौजूद दवाओं के हानिकारक ड्रग्स उनकी मौत का कारण बन जाते हैं।

देश भर मे गिरती जा रही तादाद
एक जमाना था जब उमरिया सहित पूरे जिले के आसमान मे गिद्धों के समूंह उड़ते हुए आसानी से दिखाई देते थे। केवल उमरिया या मध्यप्रदेश ही पूरे देश मे यही हाल है। पक्षी विशेषज्ञों का दावा है कि कुछ वर्ष पहले तक देश मे गिद्धों की संख्या लगभग ४ करोड़ थी, पर इनकी तादाद अब घटकर लगभग महज ६० हजार ही रह गई है। इसलिए सरकार वन विभाग के माध्यम से हर दो साल मे गिद्धों की गणना करवाती आ रही है। रिटायर्ड वन अधिकारी केके झा का कहना है कि बिना जनभागीदारी के न तो गिद्धों का सरंक्षण किया जा सकता है, न ही उनकी सटीक गणना की जा सकती है।

सत्रह वर्ष पूर्व लगाई गई थी रोक
लगातार घटती संख्या के कारण गिद्ध प्रजाति के विलुप्त होने का जो खतरा मंडरा रहा है, उसकी मुख्य वजह बीमार मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक डाईक्लोफिनेक दवा है। वन्य जीव विशेषज्ञों ने बांधवभूमि से चर्चा के दौरान बताया कि सरकार ने १७ साल पहले इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगाकर इसकी जगह मेलोक्सिकेम मेडिसिन को अपनाने की सिफारिश की थी। मगर प्रतिबंध के बावजूद आज भी डाईक्लोफिनेक दवा गैर-कानूनी तरीके से बाजार मे बेची जा रही है और मवेशियों के लिए किसान इसका उपयोग धड़ल्ले से करते आ रहे हैं। जब मवेशी मर जाते हैं, तब उनके शरीर मे मौजूद दवा गिद्धों की मौत की वजह बन जाती है।

दो बार होगी गिद्धों की गणना
सूत्रों के मुताबिक हर २ साल मे होने वाली गिद्ध गणना इस बार नये वर्ष मे २ बार होगी। पूरे मध्यप्रदेश मे गिद्धों की गणना जनवरी और मई माह मे एक ही दिन, एक ही समय मे एक साथ की जाएगी। गणना मे वन कॢमयों के अलावा पर्यावरण प्रेमी एनजीओ को भी शामिल किया जाएगा। गिद्धों की २ बार गणना इसलिए कि जाती है कि पहले की गई गणना मे गिद्धों की संख्या का दूसरी बार की गई गणना से मिलान किया जाता है, जिससे गिद्धों की संख्या की सही व सटीक जानकारी मिल सके ।

कितने प्रकार के होते हैं गिद्ध

देश मे 9 प्रकार के गिद्ध पाये जाते हैं। एक गिद्ध का वजन 3.50 किलो से लेकर लगभग 8 किलो तक होता है। जो नौ प्रजातियां हैं, उनमे श्याम गिद्ध, अरगुल गिद्ध, यूरेशियन पांडुर गिद्ध, सफेद पीठ गिद्ध, दीर्घचुंच गिद्ध, बेलनाचुंच गिद्ध, पांडुर गिद्ध, गोपर गिद्ध और राज गिद्ध शामिल हैं।

पर्यावरण मित्र हैं गिद्ध, इनकी रक्षा करें
मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक डाईक्लोफिनेक प्रतिबंधित है, लिहाजा इसे बेंचना या खरीदना गैरकानूनी है। गिद्ध प्रकृति के निशुल्क सफाई क र्मी माने जाते हैं। ये मृत जीवों को तत्काल समाप्त कर गंदगी और संक्रमण से मुक्ति दिलाते हैं। बीते कुछ वर्षो मे शासन द्वारा किये गये उपायों से गिद्धों की संख्या मे वृद्धि हुई है। नागरिकों को भी इस पर्यावरण मित्र जीव के संरक्षण मे अपना योगदान देना चाहिये। ग्रामीण और पशु पालक उन दवाओं का उपयोग न करें, जो गिद्ध या अन्य पशु-पक्षियों के लिये घातक हैं।
पीके वर्मा
संयुक्त संचालक
बांधवगढ़ नेशनल पार्क

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