शरद पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण का योग  

शरद पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण का योग  

पूजा-अर्चना से दूर होंगे अशुभ प्रभाव, 9 घंटे पूर्व रूक जायेंगी धार्मिक गतिविधियां

बांधवभूमि, उमरिया
विविध धार्मिक घटनाओं का प्रतीक आध्यात्मिक पर्व शारद पूर्णिमा आज जिले मे श्रद्धाभाव के सांथ मनाया जायेगा। इस बार लगभग 9 वर्ष बाद इस दिन चंद्रग्रहण का योग बन रहा है। इससे पूर्व साल 2014 मे ऐसा ही संयोग निर्मित हुआ था। खगोलविदों के मुताबिक आज पूर्ण-चन्द्रग्रहण का नजारा मप्र सहित देश के पूर्वोत्तर राज्यों मे देखा जा सकेगा। जिले के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. उपेन्द्र नाथ द्विवेदी के अनुसार ग्रहण के अशुभ प्रभावों से निजात पाने के लिए इस दिन गरीबों को दान, भोजन व गायत्री-मंत्र जाप का प्रावधान है। सभी को अपने इष्ट-देव की आराधना और उपवास करना चाहिये। ऐसी परिस्थिति मे लोग ग्रहण के उपरांत स्नान कर भोजन ग्रहण करते हैं। चन्द्रग्रहण मे सूतक 9 घंटे पहले लगता है। सूतक काल मे जहां देव-दर्शन, स्पर्श आदि वॢजत माने गए हैं, वहीं मंदिरों के पट भी बंद कर दिये जाते हैं। बालक, वृद्ध व रोगियों के लिए ग्रहण के 3 घण्टे पूर्व से सूतक लगेगा।

अर्धरात्रि को पड़ेगी छाया
बताया गया है कि ग्रहण 28 अक्टूबर की रात्रि 1.05 बजे लगेगा, जिसका मध्य काल 1.44 तक होगा। ग्रहण की कुल अवधि 1 घंटा 19 मिनट रहेगी। चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले यानी शाम 4.05 बजे से शुरू  हो जाएगा। सूतक चंद्र ग्रहण खत्म होने तक यानी 2.24 बजे तक रहेगा। मान्यता है कि शरद पूॢणमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं। चंद्र ग्रहण का सूतक होने से शाम 4.05 बजे से पहले पूजा-पाठ करना चाहिए। इसके बाद ग्रहण खत्म होने तक यानी रात 2.24 बजे तक देवी के मंत्रों का जप कर सकते हैं।

ये है मान्यता
शरद पूर्णिमा की रात घर की छत पर खीर आदि भोज्य पदार्थ रखने की भी मान्यता है। कहा जाता है कि चंद्रमा की अमृत बूंदे खीर मे आ जाती हैं, जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां दूर होती हैं। लेकिन चंद्र ग्रहण के सूतक काल के कारण इस बार ऐसा करना ठीक नहीं रहेगा। इस स्थिति मे 28 अक्टूबर की रात चंद्र ग्रहण समाप्त होने के बाद यानी रात 2.24 के बाद खीर बनाएंगे तो बेहतर रहेगा, क्योंकि शा ों की मान्यता है कि ग्रहण और सूतक के समय मे खाना न तो बनाना चाहिए और न ही खाना चाहिए। इस दौरान खाने को अपवित्र होने से बचाने के लिए उसमे तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा है।

कृष्ण ने रचाया था रास
ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी यह देखने घूमती हैं कि कौन जाग जा रहा है, जो जागता है, महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं और जो सो रहा होता है, महालक्ष्मी वहां नहीं ठहरतीं। शास्त्रों के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को रासलीला की रात भी कहते हैं।

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