वक्फ अधिनियम पर संसद को नहीं दे सकते कानून बनाने का आदेश:सुको

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ अधिनियम की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि ये प्रावधान वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा देते हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि वह संसद को एक नया कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती है और कानून की संवैधानिकता को संक्षेप में चुनौती नहीं दी जा सकती है। पीठ ने याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय से पूछा कि उनपर अधिनियम का कैसे असर पड़ रहा है और क्या उनकी कोई संपत्ति कानून के तहत विनियोजित की गई है।

संसद को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकते

अदालत ने पूछा, आपके अधिकारों का हनन कैसे हुआ? हमें एक उदाहरण दिखाएं जहां आपकी संपत्ति को विनियोजित किया गया है। हम संक्षेप में किसी भी कानून की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दे सकते। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती मिलने पर हमें बेहद सावधान रहने की जरूरत है। कानून एक विधायी निकाय द्वारा अधिनियमित किया गया है। एक पीड़ित पक्ष होना चाहिए और कुछ तथ्य होने चाहिए। कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि कोई भी अदालत चाहे वह उच्च न्यायालय हो या सर्वोच्च न्यायालय, संसद को कानून बनाने के लिए कोई आदेश जारी नहीं कर सकता है। पीठ ने कहा, अपनी याचिका में आप कह रहे हैं कि संसद के संवैधानिक दायरे में आने वाले सभी ट्रस्टों के लिए एक समान कानून होना चाहिए। हम संसद को निर्देश नहीं दे सकते हैं और कानून बनाने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकते हैं। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह वास्तव में विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप के समान होगा। व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने अपने सबमिशन का एक नोट तैयार किया है और इसे ध्यान में रखा जा सकता है। पीठ ने कहा, हम नहीं चाहते कि आप नोट पढ़कर पब्लिसिटी स्टंट करें। आपका नोट कहता है कि आपकी रिट याचिका में क्या है, हम संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते, इसलिए दो प्रार्थनाओं पर विचार नहीं किया जा सकता है। उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने नया कानून बनाने की दिशा के अलावा वक्फ कानून के दायरे को भी चुनौती दी है।

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