राजनैतिक षडय़ंत्र का नतीजा था उमरिया जिले का परिसीमन
विधानसभाओं के अव्यहारिक विखण्डन से वर्षो प्रभावित रही विकास की गति
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश, उमरिया
सूबे की सियासत मे उमरिया का हमेशा से अहम रोल रहा है। जिले ने प्रदेश को स्व. कुंवर अर्जुन सिंह और पं. शंभूनाथ शुक्ल के रूप मे दो-दो मुख्यमंत्री दिये। इतना ही नहीं राज्य मे उसी दल की सरकार बनी, जिसका विधायक उमरिया की जनता ने चुना। लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ होने और राजनीति मे यहां का तगड़ा दखल प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं के आंख की किरकिरी बना गया। यही कारण है कि वे क्षेत्र को निपटाने का कोई मौका नहीं चूकते थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आखिरकार इन ताकतों को परिसीमन के रूप मे एक बड़ा हथियान हांथ लग गया। अभी तक जिले की उमरिया अनारक्षित तथा नौरोजाबाद विधानसभा सीट अजजा वर्ग के लिये आरक्षित थी। 2003 के आसपास हुए परिसीमन के बाद उमरिया का नाम ही विलोपित करा दिया गया। बदले मे मानपुर और नौरोजाबाद नामक दो विधानसभाएं अस्तित्व मे आई। ये दोनो सीटें अजजा वर्ग के लिये आरक्षित हो गई।
इस सोच से लिखी गई पटकथा
कालांतर मे हुए परिसीमन ने जिले का भूगोल एक बार फिर बदल दिया। यह परिसीमन विधानसभाओं के अव्यहारिक विखण्डन के कारण लंबे समय तक चर्चाओं मे रहा। कई लोगों का यह भी मत था कि प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं ने एक वर्ग को हमेशा के लिये राजनैतिक वनवास देने की सोची-समझी साजिश के तहत इस तरह के परिसीमन की पटकथा लिखी। कहा जाता है कि परिसीमन मे नियमो की जम कर धज्जियां उड़ाई गई।
भौगोलिक और सांस्कृतिक बेमेल
दिल्ली और भोपाल के इशारे पर एक ओर जहां नौरोजाबाद विधानसभा क्षेत्र के पाली और उमरिया विधानसभा क्षेत्र के मानपुर विकासखण्ड को मिला कर मानपुर विधानसभा बनाई गई। तो दूसरी ओर बांधवगढ़ तहसील के करकेली ब्लाक को तोड़ कर इसे बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र का दर्जा दे दिया गया। कुल मिला कर पूरी कवायद दोनो क्षेत्रों को किसी तरह से अनारक्षित कराने की कोशिश मात्र थी। यह परिसीमन भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से भी बेमेल था। इसकी वजह से कई वर्षो तक जिले का विकास बाधित रहा।
2018 मे टूटा मिथक
कई वर्षो तक यह मान्यता थी कि प्रदेश की सत्ता का रास्ता उमरिया से हो कर गुजरता है। राज्य मे लगभग हर बार उसी दल की सरकार बनी, जिसने उमरिया फतह की। यह क्रम 1977, 1989 और 2003 के बाद 2013 तक चलता रहा। हलांकि 2018 के विधानसभा चुनाव मे यह मिथक टूट गया। इस चुनाव मे भाजपा के दोनो विधायक चुने जाने के बावजूद राज्य मे कांग्रेस की सरकार बनी। हलांकि 15 महीने बाद पुन: भाजपा ने सत्ता हांसिल कर ली।
42 साल फिर अस्तित्व मे आया जिला
गौरतलब है कि वर्ष 1956 के पहले तक यह जिला विंध्यप्रदेश का भाग रहा। बाद मे इस समूचे राज्य को मिला कर मध्यप्रदेश अस्तित्व मे लाया गया। इसी दौरान उमरिया जिले का विखण्डन हुआ और यह नवगठित शहडोल जिले मे समाहित हो गया। शहडोल जिले की आठ विधानसभाओं मे उमरिया और नौरोजाबाद भी शामिल हुई। लगभग 42 वर्ष बाद साल 1998 मे तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने एक बार फिर उमरिया को जिले का दर्जा दे दिया और दोनो विधानसभायें इसका हिस्सा बन गई। तब से 2003 तक उमरिया अनारक्षित तथा नौरोजाबाद विधानसभा अजजा वर्ग के लिये सुरक्षित रही।