रबी सीजन मे घटे 2064 पंजीयन

सरकारी उपार्जन से किसानो का मोहभंग जारी, भा रहा बाजार का लेनदेन
बांधवभूमि, उमरिया
सरकारी केन्द्रों मे गेहूं उपार्जन को लेकर किसानो की दिलचस्पी लगातार कम होती जा रही है। इसका प्रमाण रबी सीजन मे पंजीयन का गिरता ग्राफ है। जानकारी के मुताबिक गत 5 मार्च को अवधि पूर्ण होने तक रबी सीजन हेतु जिले के 14 हजार 266 किसानो ने अपना पंजीयन कराया है। जबकि पिछले साल यह तादाद 16 हजार 312 थी। मतलब यह कि गत सीजन की तुलना मे इस वर्ष 2046 किसानो की कमी आई है। इसके पीछे शासकीय उपार्जन केन्द्रों मे व्याप्त अव्यवस्था तथा बाजार का सुविधापूर्ण वातावरण कारण बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक किसानो को उम्मीद है कि बीते वर्ष की तरह इस बार भी बाजार मे गेहूं की मांग बेहतर रहेगी, और उन्हे फसल के दाम उपार्जन केन्द्रों से अधिक मिलेंगे। उनका दावा है कि जिन किसानो ने अपना पंजीयन कराया है, उनमे से भी कई अपनी उपज व्यापारियों के यहां ही बेचेंगे।
नाज-नखरे और कमीशनबाजी
जानकारों का दावा है कि सरकारी उपार्जन केन्द्र मे बिचौलियों का दखल, कमीशनबाजी और अनाज लेने मे नाज-नखरों के कारण किसानो भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जबकि बाजार मे इस तरह की कोई परेशानी नहीं होती। हलांकि इस वर्ष गेहूं का समर्थन मूल्य 2140 रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, वहीं बाजार मे अभी यह दाम 2000 रूपये के आसपास है। इसके बावजूद कई लोग केन्द्रों की बजाय बाजार मे ही अपनी फसल बेंचने का मन बना रहे हैं। उनका कहना है कि व्यापारियों के यहां किसी प्रकार की बहानेबाजी या दलाली जैसी समस्या नहीं है, वहीं उन्हे पैसा भी तत्काल मिल जाता है।
लगातार आ रही कमी
बताया जाता है कि गेहूं की मांग बढऩे के कारण दामो मे काफी सुधार आया है। पिछले साल तो बाजार और सोसाईटियों के दाम लगभग एक बराबर हो गये थे, जिससे आढ़तों मे अनाज की उपज एकाएक बढ़ गई। व्यापारियों द्वारा किसानो का गेहूं कृषि उपज मण्डी के सौदा पत्रक से खरीदा गया था, जिससे पारदर्शिता बनी रहीं और किसी को भी दिक्कत नहीं हुई। एक जानकारी के मुताबिक उपार्जन वर्ष 2022 मे सरकारी केन्द्रों द्वारा करीब 2.25 लाख क्विंटल, वहीं मण्डी के जरिये 1.66 लाख क्विंटल गेहूं खरीदा गया था।
बढ़ रही गेहूं की किल्लत
बाजारों मे गेहूं की मांग बढऩे तथा सोसाईटियों मे आवक कम होने से सरकार का भण्डार भी घटता जा रहा है। यही कारण है कि जिले की उचित मूल्य दुकानो मे हितग्राहियों को कई महीनो से सिर्फ चावल ही प्रदाय किया जा रहा है। वहीं सरकारी अधिकारी इसके पीछे अलग ही तर्क दे रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार गरीब परिवारों को सेहतमेंद बनाने के लिये चावल दे रही है, क्योंकि चावल मे गेहूं की तुलना मे अधिक केलोरी होती है। वहीं हितग्राही चावल खा-खाकर ऊब चुके हैं और वे लगातार सरकार से गेहूं की मांग कर रहे हैं।

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