संविधान के नियमों को स्थगित करने का अध्यादेश लाना राज्यपाल के अधिकार में नहीं
भोपाल। मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर जारी अधिसूचना के संबंध में पूर्व मंत्री एवं विधायक कमलेश्वर पटेल ने आज एक पत्रकार वार्ता को संबोधित किया। श्री पटेल ने कहा कि सबसे पहले वह संविधान निर्माता बोधिसत्व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को उनके महानिर्वाण दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बाबा साहब के बनाए संविधान से घृणा करती है। इसीलिए संवैधानिक परंपराओं और नियमों को ताक पर रखकर मध्यप्रदेश में गलत तरीके से पंचायत चुनाव कराने की घोषणा की गई है। श्री पटेल ने कहा कि संविधान और पंचायत राज की भावना को अनदेखा करते हुए तानाशाही तरीका अपनाया गया है। शिवराज सरकार पंचायत चुनाव को दलीय चुनाव में बदलना चाहती है। परिसीमन को तानाशाही तरीके से रद्द करने का कोई कारण नहीं बताया गया। पंचायतों को भी नहीं मालूम कि परिसीमन रद्द हो चुका है। उन्होंने कहा कि जब पेसा अधिनियम लागू कर दिया गया है तो अनुसूचित क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी यह किसी को मालूम नहीं है। बिना तैयारी के चुनाव की घोषणा से नए मतदाताओं को वोट डालने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। श्री पटेल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 355 के अनुसार प्रत्येक राज्य की सरकार भारतीय संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करेंगी। संविधान के अनुच्छेद 243 डी में कहा गया है कि त्रिस्तरीय पंचायतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसी तरह 243 (टी) नगर पालिकाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल केवल उन्हीं विषयों पर अध्यादेश ला सकते हैं जिन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है। भारतीय संविधान इस देश का सर्वोच्च कानून है जिस के प्रावधानों को बदलने, छेड़छाड़ करने हेतु संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के दायरे से परे जाकर अध्यादेश लाना असंवैधानिक है। संवैधानिक प्रावधानों को बदलने हेतु अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है। श्री पटेल ने कहा कि मध्यप्रदेश शासन के राज्य पत्र क्रमांक 454 जारी दिनांक 21 नवंबर 2021 माननीय उच्चतम न्यायालय के डी सी बाधवा केस तथा भारत के सर्वोच्च कानून भारतीय संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243 सी एवं डी के तहत पंचायतों में दो तथ्य आवश्यक हैं। पहला परिसीमन और दूसरा रोटेशन में प्रति 5 वर्ष में पंचायतों में आरक्षण कराकर चुनाव कराएं। उन्होंने पूछा कि क्या मध्य प्रदेश सरकार किसी अध्यादेश के जरिए भारतीय संविधान को बदल सकती है। वर्ष 2019-20 में परिसीमन एवं आरक्षण, जिला पंचायत अध्यक्ष को छोड़कर, भाजपा के समर्थित कुछ व्यक्ति माननीय उच्च न्यायालय गए थे, माननीय उच्च न्यायालय ने परिसीमन को सही ठहराया था। भाजपा सरकार ने पंचायतों का परिसीमन पिछले 15 वर्षों में कभी कराया ही नहीं। परिसीमन का मुख्य उद्देश्य छोटी पंचायतों एवं जनसंख्या आकार में बराबर बांट कर पंचायतों का गठन करना है। आरक्षण का यह मतलब है कि प्रतिनिधित्व का आरक्षण रोटेशन क्रम में सभी वर्ग को समान अवसर उपलब्ध कराना है। श्री पटेल ने कहा कि 2014 के निर्वाचन की स्थिति में जिस पंचायत अध्यक्ष के पद पर पुरुष का आरक्षण था, वह 2021 निर्वाचन में महिला का आरक्षण किया जाना था किंतु अध्यादेश के आने के पश्चात वह पद पुनः पुरुष के लिए आरक्षित हो जाने से मध्य प्रदेश शासन के महिलाओं के सशक्तिकरण संबंधी खोखले दावों की पुष्टि करता है। एक सवाल के जवाब में श्री पटेल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि यह चुनाव असंवैधानिक रूप से कराए जा रहे हैं। यदि कुछ पीड़ित पक्ष अदालत में चुनाव प्रक्रिया को चुनौती देते हैं तो कांग्रेस उनकी आवश्यक मदद करेगी। यदि चुनाव होते हैं तो कांग्रेस पार्टी पीछे हटने वाली नहीं है और कांग्रेस के कार्यकर्ता चुनाव में भाग लेंगे। पत्रकार वार्ता को पूर्व मंत्री एवं विधायक पीसी शर्मा एवं श्री जेपी धनोपिया ने भी संबोधित किया।
मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव की प्रक्रिया असंवैधानिक : पटेल
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