बाजारों मे छाई मायूसी, त्यौहार और वैवाहिक सीजन सेे नाउम्मीदी का माहौल
बांधवभूमि, उमरिया
जिले के कारोबार पर छाई भीषण मंदी के कारण व्यापारियों मे हताशा और भविष्य के प्रति अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है। आलम यह है कि बाजारों से ग्रांहक नदारत हैं, दुकानदार फुरसत बैठे हुए हैं, ऐसे मे उन्हे नफा तो दूर अपना और कर्मचारियों का खर्च निकालना भी मुहाल हो रहा है। सूत्रों की माने तो बीते त्यौहारी सीजन से लेकर नवरात्र के दौरान सड़कों पर लोगों की भीड़ तो बहुत थी, पर उनमे सामान खरीदने वाले नहीं के बाराबर थे। चाहे आटोमाईल सेक्टर हो, भवन निर्माण, मशीनरी, इलेक्ट्रानिक, जनरल या फिर किराना और अनाज, सभी मे स्थिति बद से बदतर है। आगामी दीपोत्सव पर्व 22 अक्टूबर से प्रारंभ होने जा रहा है। वहीं 4 नवंबर अर्थात देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जायेंगे, इसके बावजूद व्यापारियों मे नाउम्मीदी का माहौल है। इसकी मुख्य वजह बीते साल का कटु अनुभव हैं। जब ग्रांहकी न होने से लोगों का आधे से भी अधिक स्टाक धरा रह गया था। यही कारण है कि इस बार दुकानो मे स्टॉकिंग सोच-समझ कर सिर्फ काम चलाऊ हिसाब से की जा रही है।
कम हुई पूंजी की आवक
जानकारों का मानना है कि जिले मे कुछ वर्षो से बनी परिस्थितियों के कारण बाजारों मे पैसे की आवक घटती जा रही है। इसका मुख्य कारण शासकीय कार्यालयों के खाली होते पदों पर नई भर्तियों का नहीं होना है। देखा जाय तो हाल के कुछ वर्षो मे रेलवे, कालरी, विद्युत विभाग जैसे उपक्रमो के अलावा सरकारी महकमो से सैकड़ों अधिकारी, कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए हैं। इनके वेतन से ही दुकानो मे रौनक बनी रहती थी। यदि यही हाल रहा तो आने वाले समय मे दिक्कत और बढ़ती चली जायेगी।
बेरोजगारी चरम पर
सूत्रों का दावा है कि खराब वित्तीय हालत के कारण सरकार द्वारा कर्मचारियों के सेवानिवृति की सीमा बढ़ाने से युवा नौकरी की आयु खोते जा रहे हैं। शासन के विकास कार्य पूरी तरह ठप्प हैं। वहीं मनरेगा आदि सरकारी योजनाओं की हालत भी कुछ ठीक नहीं है। जिले का पूरा दारोमदार ले दे कर कालरियों पर है, उनमे से कई बंद होने की कगार पर हैं। वहीं अनेक खदाने ठेके पर सौंपी जा चुकी हैं। कुल मिला कर सरकार की नीतियां बेरोजगारी को बढ़ाने मे अपना भरपूर योगदान दे रही हैं।
घटती क्रयशक्ति का दुष्प्रभाव
जनसंख्या वाले देश मे सरकार द्वारा कम वेतन या ठेका पद्धति पर काम चलाने की नीति ने जहां कारोबार का भ_ा बैठा दिया है, वहीं अपनी जरूरतें पूरी करने के लिये लोग अपराध और भ्रष्टाचार का सहारा लेने पर मजबूर हो रहे हैं। 40 से 60 हजार पाने वाला शासकीय कर्मचारी 10-15 हजार की किस्त पर चार पहिया वाहन आसानी से खरीद लेता था। रिटायरमेंट के बाद उनका स्थान 15-20 हजार वाले संविदाकर्मी लेते जा रहे हैं। इतनी रकम मे वाहन या कोई बड़ी वस्तु खरीदना तो दूर उनका घर चलाना भी मुश्किल है। लोगों की घटती क्रयशक्ति ने हर क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया है।
ज्यादा बारिश से उड़द, तिली स्वाहा
उद्योग के बाद कृषि क्षेत्र का व्यापार मे बड़ा योगदान है, जिस पर इस बार मौसम की वक्रदृष्टि बनी हुई है। बताया जाता है कि ज्यादा बारिश के कारण जिले के अधिकांश हिस्सों मे बोई गई उड़द और तिली की फसल स्वाहा हो चुकी है। वहीं सोयाबीन आधी से कम रह गई है। बची हुई धान की खेती पर भी बारिश का खतरा मंडरा रहा है।
मंदी से नहीं उबर रहा कारोबार
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