भिंड, चंबल अंचल मे गिरता लिंगानुपात चिंताजनक

भिंड, चंबल अंचल मे गिरता लिंगानुपात चिंताजनक
चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 49वीं ई संगोष्ठी, सह कार्यशाला सम्पन्न
उमरिया। प्रदेश मे मुरैना, भिंड, ग्वालियर, दतिया एवं रीवा ऐसे पांच जिले हैं, जहां अभी भी लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से काफी कम हैं साथ ही यहां की सामाजिक हालत बेहद चिंताजनक हैं। दूसरी तरफ वनवासियों की बहुलता वाले जिले इस मामले मे प्रदेश को एक नई राह दिखाते हुए अग्रणी बने हुए है। तथ्य यह है कि तकनीकी और सम्पन्नता के पैमाने बालिकाओं के लिए अभिशाप बन गया है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में बालिकाओं की संख्या ग्रामीण जीवन की तुलना में लगाता कम बनी हुई है। इस जनांकिकीय असंतुलन से समाज में विभिन्न मोर्चों पर चुनौतीयां खड़ी हो रही है। उक्त आशय के उद्गार ख्यातिलब्ध सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री आशा सिकरवार ने चाईल्ड कंजर्वेशन फाण्उंडेशन की 49वीं सतत ई संगोष्ठी, सह प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। संगोष्ठी को गुजरात राज्य बाल सरंक्षण आयोग की अध्यक्ष जाग्रति बेन पांड्या ने भी संबोधित किया।
आदिवासी जिलों मे बेहतर स्थिति
देश में लिंगानुपात की चर्चा करते हुए सुश्री सिकरवार ने बताया कि जहां एक तरफ चंबल के चार जिले एवं रीवा में लगातार लिंगानुपात गिर रहा है वहीं आलीराजपुर, डिंडौरी, मंडला, बालाघाट और सिवनी जिलों मे यह आंकड़ा बेहतर हुआ है। जिससे साबित होता है कि तकनीकी और संपन्नता की स्थिति समाज में विद्रूपता को जन्म दे रही है। सुश्री सिकरवार के अनुसार एक हजार बालकों पर 955 बालिकाओं की संख्या आदर्श मानी जा सकती है, लेकिन चंबल और रीवा जिले मे कहीं भी 890 बालिकाएं भी नही हैं।
बहुआयामी समस्याओं का कारक
सुश्री आशा सिकरवार ने बताया कि मप्र मे बड़ी संख्या में ओडिसा, बिहार, बंगाल, झारखंड से बालिकाओं को सस्ते में खरीदकर विवाह के लिए लाया जाता है। इस तरह के बेमेल विवाह घटते लिंगानुपात का नतीजा ही है। घरेलू हिंसा, बलात्कार एवं तनाव की यह सामाजिक स्थिति असल मे अलग-अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के चलते होती है। इसलिए लिंगानुपात का गिरना बहुआयामी समस्याओं की जड़ भी है। उन्होंने बताया कि मप्र मे इस मामले में सरकारी स्तर पर निगरानी औऱ शास्तिमूलक कारवाई के प्रति सरकार गंभीर नही हैं। इस क्षेत्र में अभी भी बहुत ही प्रमाणिक प्रतिबंधात्मक कारवाई औऱ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।
गुजरात मे भी बाल विवाह की समस्या
ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए गुजरात राज्य बाल सरंक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती जाग्रति बेन पांड्या ने बताया कि देश भर की तरह गुजरात मे भी बसन्त पंचमी को अबूझ मुहूर्त मे बड़ी संख्या में बाल विवाह की शिकायत सामने आती है। उन्होंने बताया कि खेड़ा, अहमदाबाद, गांधीनगर, बलसाड़, दाहोद एवं आनंद जिलों में बाल विवाह की कुरीति अभी भी प्रचलन में है। आयोग इस मोर्चे पर सरकार और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। श्रीमती जागृति बेन ने बताया कि गुजरात मे औधोगिकीकरण एवं शहरीकरण अधिक होने से पड़ोसी राज्य मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र के अलावा बिहार, झारखंड, ओडिसा, बंगाल से बड़ी संख्या में गरीब मजदूरों को काम पर लाया जाता है। इन मजदूरों के बच्चों को बेहतर शिक्षा एवं पोषण मिले इसके लिए भी आयोग बड़े पैमाने पर काम कर रहा है।
संकीर्ण मानसिकता से लड़ाई जरूरी: गौतम
संगोष्ठी मे अपने विचार रखते हुए जिला बाल कल्याण समिति उमरिया के अध्यक्ष दिव्यप्रकाश गौतम ने कहा कि लिंगानुपात का असंतुलन वनांचल से ज्यादा शहरी इलाकों मे होना यह दर्शाता है कि जागरूकता के प्रयासों के बावजूद बेटे और बेटी मे भेद की संकीर्ण मानसिकता खुद को विकसित बताने वाले समाज मे कहीं ज्यादा है। इसके खिलाफ निर्णायक लड़ाई जरूरी है।
140वें स्थान पर पहुंचा भारत
फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने अपने वक्तव्य में विशेषज्ञ वक्ताओं का धन्यवाद देते हुए कहा कि लिंगानुपात की चुनौती का 2021 तक मे बरकरार रहना सभ्य और सम्पन्नता के पैमानों को कटघरे में खड़ा करता है। यह हमारी सामाजिक भूमिका को भी प्रश्नचिंहित करता है। संगोष्ठी का संयोजन कर रहे फाउंडेशन के सचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने बताया कि मौजूदा लिंगानुपात का 943 होना अपने आप में शर्मनाक है। वैश्विक लैंगिक भेदभाव के मामले में भारत 156 देशों की सूची मे 28 स्थान नीचे खिसक कर 140 वे स्थान पर आ गया है। उन्होंने पीसीपीएनडीटी एक्ट को औऱ अधिक कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। इस कार्यक्रम मे देश भर के 19 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

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