घरेलू कंपनियों को देने का निर्णय, ओएनजीसी ने खर्च किए थे तीन सौ करोड़
नई दिल्ली। भारत ईरान एक बड़े खनिज गैस क्षेत्र के विकास और गैस-निकासी की लंबे से समय से अटकी परियोजना से वंचित होने जा रहा है। इस गैस क्षेत्र की खोज भारतीय कंपनी ने ही की थी। सूत्रों के अनुसार ईरान ने फारस की खाड़ी की फरजाद-बी परियोजना का काम अपनी घरेलू कंपनियों को देने का निर्णय किया है। ईरान इस समय सख्त अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से जूझ रहा है। ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) के नेतृत्व में भारतीय कंपनियों का एक समूह परियोजना पर अब तक ४० करोड़ डॉलर यानी करीब ३ हजार करोड़ रूपये खर्च कर चुका है। फरजाद-बी ब्लॉक में गैस के विशाल भंडार की खोज २००८ में भारतीय कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) ने की थी। ओवीएल सरकारी कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की अनुषंगी है। ओएनजीसी ने इसे विदेशी परियोजनाओं में निवेश करने के लिए बनाया है।
प्रस्ताव पर वर्षों तक कोई निर्णय नही
ओवीएल ने ईरान के इस गैस क्षेत्र के विकास पर ११ अरब डॉलर खर्च करने की योजना बनाई थी। ओवीएल के प्रस्ताव पर ईरान वर्षों तक कोई निर्णय नहीं किया। जानकार सूत्रों के अनुसार ईरान की नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी (एनआईओसी) ने इस साल फरवरी में कंपनी को बताया कि वह फरजाद-बी परियोजना का ठेका किसी ईरानी कंपनी को देना चाहती है। उस फील्ड में २१,७०० अरब घनफुट गैस का भंडार है। इसका ६० प्रतिशत निकाला जा सकता है। परियोजना से रोज १.१ अरब घन फुट गैस प्राप्त की जा सकती है। ओवीएल इस परियोजना के परिचालन में ४० प्रतिशत हिस्सेदारी की इच्छुक थी। उसके साथ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और ऑयल इंडिया लि (ओआईएल) भी शामिल थीं। ये दोनों क्रमश: ४० और २० प्रतिशत की हिस्सेदार थीं।
अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के चलते नही हुई प्रगति
ओवीएल ने गैस खोज सेवा के लिए अनुबंध २५ दिसंबर, २००२ को किया था। ईरान की राष्ट्रीय कंपनी ने इस परियोजना को अगस्त, २००८ में वाणिज्यिक तौर पर व्यावहारिक घोषित किया। ओवीएल ने अप्रैल, २०११ में इस गैस फील्ड के विकास का प्रस्ताव ईरान सरकार द्वारा अधिकृत वहां की राष्ट्रीय कंपनी एनआईओसी के सामने रखा था। इस पर नवंबर, २०१२ तक बातचीत चलती रही। लेकिन अनुबंध तय नहीं हो सका था क्योंकि कठिन शर्तों के साथ-साथ ईरान पर अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के चलते भी प्रगति मुश्किल हो गई थी। अप्रैल, २०१५ में ईरान के पेट्रोलियम अनुबंध के नए नियम के तहत बातचीत फिर शुरू हुई। अप्रैल, २०१६ में परियोजना के विकास के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बात होने के बावजूद किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सका। अमेरिका द्वारा ईरान पर नवंबर, २०१८ में फिर आॢथक पाबंदी लगाने से तकनीकी बातचीत पूरी नहीं की जा सकी। भारतीय कंपनियों का समूह इस परियोजना पर अब तक ४० करोड़ डॉलर खर्च चुका है।

