भारतीय छात्रों को निकालने मे चूकी सरकार

विदेश मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी का मानना, दांव पर लगी हजारों छात्रों की जिंदगी
नई दिल्ली।यूक्रेन संकट में आखिर भारत कहां चूक गया? यूक्रेन से छात्रों को लाने के लिए ऑपरेशन गंगा चलाया जा रहा है, लेकिन हजारों छात्रों की जिंदगी इस वक्त भी दांव पर लगी है। यह न सिर्फ विदेश मंत्रालय, बल्कि भारत सरकार के लिए बड़ी परेशानी का सबब है। विदेश मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी का मानना है कि कहीं न कहीं भारत से बड़ी चूक हो गई है। विदेश मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि यूक्रेन गए करीब 20 हजार भारतीयों ने दूतावासों में पंजीकरण कराया था। हालांकि, यह संख्या इससे कहीं ज्यादा है। 26 फरवरी से 2 मार्च तक भारत ने करीब 3500 छात्रों को यूक्रेन से निकाला है। मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची इस संदर्भ में आंकड़े के साथ मीडिया के सामने आने की तैयारी कर रहे हैं। मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि इनमें से काफी लोग यूक्रेन में लड़ाई की आशंका देखकर पहले ही निकल गए थे। वहीं, मंत्रालय के ही कुछ पूर्व अधिकारियों का कहना है कि यूक्रेन से छात्रों को निकालने का कदम ही बहुत देर से उठाया गया।
प्रधानमंत्री ने दिया भरोसा, सुरक्षित लौटेंगे छात्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी जनसभा में यूक्रेन से भारतीय छात्रों और नागरिकों को लाने की प्रतिबद्धता दिखाई है। उन्होंने कहा कि हमारे छात्र और नागरिक सुरक्षित हैं। उन्हें भारत लाने के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भारत के तमाम छात्र वहां के कई शहरों में फंसे हैं। बता दें कि पीएम मोदी सोनभद्र के राबर्ट्सगंज में भाजपा की सहयोगी अपना दल के प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित कर रहे थे।
उठने लगे कई सवाल
यूक्रेन से छात्रों और नागरिकों की वापसी बड़ा मुद्दा बन रहा है। भारत के दो छात्र अपनी जान गंवा चुके हैं। एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि अपने छात्रों और लोगों को यूक्रेन से निकालने में हमने संवेदनशीलता नहीं दिखाई। न तो समय पर कदम उठाए गए और न ही कड़ी चेतावनी जारी की गई। अमेरिका ने अपने नागरिकों को लगातार यूक्रेन छोड़ने की चेतावनी दी, लेकिन भारत ने इस तरफ भी कोई ध्यान नहीं दिया। विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि हमारी शुरुआती एडवाइजरी काफी देर से जारी की गई। हमने छात्रों को निकालने का प्रयास भी 26 फरवरी से शुरू किया। संभवत: हमने रूस की नाराजगी से बचने के लिए ऐसा किया।
भारत ने भेजा सी-17 ग्लोबमास्टर
भारत ने आज (2 मार्च) हिंडन एयरपोर्ट से वायुसेना का सी-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट रोमानिया भेजा है। इससे पहले भारत सरकार व्यावसायिक एयरक्राफ्ट के जरिए भारतीय छात्रों को लाने की सुविधा उपलब्ध करा रही थी।
यूक्रेन की सीमा तक कैसे पहुंचेंगे छात्र?
भारत ने अपने छात्रों से कहा कि वे रोमानिया-हंगरी जैसे देशों की सीमा पर आ जाएं। खारकीव में मौजूद छात्रों से कहा गया है कि वे शाम छह बजे से पहले निकल जाएं। 15 किमी दूर एक स्थान पर पहुंच जाएं। उन्हें वह जगह बता दी गई है। यह एडवाइजरी रूस से मिली जानकारी के आधार पर दी गई है। वहीं, छात्रों का कहना है कि सीमा के पास मौजूद छात्रों के लिए वहां पहुंचना आसान है, लेकिन जो छात्र यूक्रेन के दूसरे शहरों में हैं, उनके लिए रोमानिया-पोलैंड और हंगरी आदि सीमा तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। रोमानिया सीमा पर पहुंचे छात्र रोहन शर्मा ने बताया कि यहां के हालात बेहद खराब हैं।
यूक्रेन में बरनाला के युवक की ब्रेन हेमरेज से मौत
बरनाला। यूक्रेन में युद्ध के बीच पंजाब के बरनाला के छात्र चंदन जिंदल की ब्रेन हेमरेज के कारण मौत हो गई। 2 फरवरी की रात चंदन ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक के बाद कोमा में था और निजी अस्पताल में भर्ती था। चंदन के परिवार ने भारत सरकार से उसका शव वापस भारत लाने की मांग की है। बरनाला के सरकारी अस्पताल के फार्मासिस्ट शिषन जिंदल का बेटा चंदन 2018 में MBBS की पढ़ाई करने यूक्रेन गया था। चंदन वहां विनिस्तिया शहर में नेशनल पाइरोगोव मेमोरियल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था। 2 फरवरी की रात उसे अचानक हार्ट अटैक और दिमागी दौरा पड़ने पर अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने 4 फरवरी को उसका ऑपरेशन किया, लेकिन वह कोमा में चला गया। बुधवार को उसकी अस्पताल में मौत हो गई।
बेटे की देखभाल करने यूक्रेन पहुंचे थे पिता और ताया
कुछ दिन पहले ही बेटे चंदन की देखभाल के लिए उसके पिता शिषन और ताया कृष्ण कुमार यूक्रेन पहुंचे। उसके दो दिन बाद युद्ध शुरू हो गया, इसका कारण वह वहीं फंस गए। दो दिन पहले ही ताया कृष्ण कुमार अपने शहर बरनाला लौट आए। चंदन के पिता वहीं फंसे हैं। बेटे की मौत के बाद उनके पिता की हालत खराब हो गई है। यह खबर सुनकर मां किरन और अन्य परिजनों का भी रो-रोकर बुरा हाल है।
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