ब्याजखारों को मिल रही रियायत
जिले मे सूदखोरों के खिलाफ मौन जिम्मेदार अमला, सीएम की घोषणा बेअसर
उमरिया। राज्य सरकार द्वारा अपंजीकृत सूदखोरों से श्रमिकों और किसानो को मुक्ति दिलाने की घोषणा इन दिनो काफी चर्चाओं मे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो यहां तक कह दिया है कि ऐसे लोगों से लिया गया कर्ज अब पटाने की भी जरूरत नहीं है। इसके बावजूद अब तक जिले मे कोई कार्यवाही न होना इन घोषणाओं के क्रियान्वयन पर ही सवाल खड़े करता है। जिम्मेदार विभागों की इस मामले मे चुप्पी भी आश्चर्यजनक है। जानकारों का मानना है कि जिले मे जगह-जगह फैले सूदखोरों का चिन्हांकन और लिस्टिंग के अलावा इनके चुंगुल मे फंसे कमजोर व गरीब तबके तक जब तक सीएम के घोषणा की जानकारी नहीं पहुंचेगी, इसका फायदा शायद ही लोगों को मिल सके।
शहर से गांव तक फैला कारोबार
जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण अंचलों तक ब्याजखोरी का कारोबार कोई नई बात नहीं है। यहां ऐसे भी कई परिवार हैं, जिन्होने यदि एक बार दुकानदारों से नगद या उधार सामान खरीदा, फिर वे कभी उनके कर्ज से उऋण हुए ही नहीं। अनेक लोगों को तो उधारी चुकता करने के लिये अपनी जमीने, जेवर और पशु तक बेंचने पड़े। बताया गया है कि सूदखोरों की दुकानदारी किसानो से लेकर कोयलांचल, रेलवे, मंगठार पावर प्लांट आदि मे कार्यरत मजदूरों के बीच अभी भी बेरोकटोक चल रही है।
एटीएम कार्ड और पासबुक भी गिरवी
कहा जाता है कि सूदखोर गरीबों की मजबूरी का फायदा उठा कर उनका काम तो चला देते हैं, परंतु उनसे 10 से 30 प्रतिशत तक मोटा ब्याज वसूलते हैं। इसके लिये कारोबारी कर्जदार का एटीएम, पिन नंबर और पासबुक तक अपने कब्जे मे ले लेते हैं और जैसे भी तन्ख्वाह मजदूर के खाते मे आई, पूरा पैसा निकाल लिया जाता है।
ईमानदार देनदार परेशान
सरकार की घोषणा ने सूदखोरों के लिये भी समस्यायें खड़ी कर दी हैं। इसका मुख्य कारण कर्जदारों की डगमगाती नियत है। बताया जाता है कि जिले मे कई ऐसे व्यापारी और अढ़तिया हैं जो वर्षो से खेती-किसानी, शादी-विवाह या आकस्मिक जरूरत के समय तत्काल किसानो, मजदूरों आदि को वाजिब ब्याज पर रकम उधारी मे देते हैं। जब से मुख्यमंत्री ने सूदखोरों का पैसा न लौटाने की बात कही है, तब से कर्जदारों की नियत डोल गई है, अब वे पैसा लौटाने मे आनाकानी करने लगे हैं। इस कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ऐसे मे ईमानदार व्यापारियों का लाखों रूपये डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया है। कई लोग तो उधारी देने का धंधा ही बंद करने की सोच रहे हैं।