सीबीआई की विशेष अदालत के जज एसके यादव ने रिटायर होने के पहले सुनाया फैसला
लखनऊ। तुलसी रचित दो पंक्तियां हैं- ‘प्रनतपाल रघुनायक करूना सिंधु खरारि। गए सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि। मोटे तौर पर इसका अर्थ है कि रघुनाथ यानी राम दया के समुद्र हैं। शरण में आने वाले का सब अपराध भुला देते हैं। सही ही कहा है तुलसी बाबा ने…! बाबरी मस्जिद ढांचा ढहाए जाने के २६५ दिन बाद मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया। उसे पता करना था कि किसने साजिश रची, किसने ढांचा गिराया। सीबीआई टीम करीब ३ साल जांच करती रही। फिर सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में ही सुनवाई शुरू हुई। आखिरकार ३० सितंबर को फैसला आ गया। बाबरी से सब बरी कर दिए गए। सब यानी सभी ३२ आरोपी, जो जिंदा हैं। वैसे कुल ४८ आरोपी थे। इनमें से १६ अब नहीं हैं। घटना के २८ साल बाद फैसला सुनाने वाले सीबीआई कोर्ट के जज एसके यादव ने २३०० पन्ने लिखे हैं। ये उनका आखिरी फैसला है। आज ही रिटायर भी हो रहे हैं। फैसले में जज ने कहा कि सीबीआई किसी के भी खिलाफ एक भी आरोप साबित नहीं कर सकी। इसलिए लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत सभी आरोपी बरी किए जाते हैं। ये सब राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे। ये इत्तेफाक ही है कि इसी बाबरी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला भी ३० सितंबर को ही आया था। लेकिन १० साल पहले।
कौन थे 32 आरोपी
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमरनाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।
कोर्ट को नहीं मिल पाए तस्वीरों के निगेटिव
जज ने कहा कि आरोपियों की विवादित परिसर में मौजूदगी थी, लेकिन उस वक्त की तस्वीरों से यह साफ नहीं होता कि वे ही विवादित ढांचे को गिरा रहे थे। जो फोटोग्राफ बतौर सबूत पेश किए गए, वे निगेटिव से एनलार्ज कर बनाए गए थे, लेकिन उनके निगेटिव अदालत में पेश नहीं किए गए। इसलिए इन सबूतों को माना नहीं जा सकता।
गवाहों के अलग-अलग बयान
फैसले के पेज नंबर २२३४ पर कहा गया है कि जो लोग मौके पर मौजूद थे, जो सरकारी कर्मचारी थे और जो आम लोग थे, इनके बयानों में विरोधाभास पाया गया। कोर्ट में कई गवाहों ने अपने बयान में ऐसी बहुत सी बातें कहीं, जो कोर्ट को पहली बार बताई गई और पहले सीबीआई को नहीं बताई गई थी। इसलिए इन्हें गवाहों का सुधरा हुआ बयान माना गया। किसी भी गवाह ने साफ तौर पर यह नहीं बताया कि आरोपी विवादित ढांचे को तोड़ रहे थे। जो बयान सामने आए और साक्ष्य पेश किए गए, वे इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि ६ दिसंबर १९९२ को बाबरी ढांचा गिराने की कोई योजना नहीं थी। इसके बाद मामले में ट्रायल शुरू हुआ और २००७ में पहली गवाही हुई। केस से जुड़े वकील केके मिश्रा बताते हैं कि कुल ९९४ गवाहों की लिस्ट थी, जिसमें से ३५१ की गवाही हुई। इसमें १९८/९२ मुकदमा संख्या में ५७ गवाहियां हुईं, जबकि मुकदमा संख्या १९७/९२ में २९४ गवाह पेश हुए। कोई मर गया, किसी का एड्रेस गलत था तो कोई अपने पते पर नहीं मिला।
फैसले मे पाकिस्तान का जिक्र
फैसला कहता है कि उत्तर प्रदेश के आईजी को इंटेलिजेंस रिपोर्ट मिली थी कि पाकिस्तान में बने एक्सप्लोसिव दिल्ली के रास्ते अयोध्या पहुंचे हैं। ऐसी ही एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब १०० लोग जम्मू-कश्मीर के उधमपुर से रवाना हुए हैं और कारसेवकों के भेष में अयोध्या आ रहे हैं। इतनी अहम जानकारी के बावजूद कोई जांच नहीं की गई।
17 साल चली लिब्रहान आयोग की जांच, 48 बार मिला विस्तार
६ दिसंबर १९९२ के १० दिन बाद केंद्र सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन कर दिया, जिसे तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन आयोग की जांच पूरी होने में १७ साल लग गए। जानकारी के मुताबिक, इस दौरान तकरीबन ४८ बार आयोग को विस्तार मिला। मीडिया रिर्पोट्स के मुताबिक, आयोग पर आठ से दस करोड़ रुपए भी खर्च किए गए। ३० जून २००९ को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जांच रिपोर्ट का कोई भी प्रयोग मुकदमे में नहीं हो पाया न ही सीबीआई ने आयोग के किसी सदस्य का बयान लिया।