बहनो का बंधन भी हुआ मंहगा

बहनो का बंधन भी हुआ मंहगा

आम आदमी पर चौतरफा मंहगाई की मार, 20 फीसदी तक बढ़े राखियों के दाम

बांधवभूमि न्यूज, उमरिया

सदियों से तीज-त्यौहार इस देश की पहचान रहे हैं। जिनके जरिये लोग आपस मे मिलते जुलते और खुशियां मनाते आये हैं। इनके बगैर भारतीय समाज की परिकल्पना अधूरी है। लेकिन बीते कुछ वर्षो से मंहगाई ने जीवन यापन के सांथ पर्व मनाना भी जैसे मुश्किल ही कर दिया है। कुछ ही दिनो मे बहन-भाईयों के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन आने वाला है। जिसे देखते हुए बहनो ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। शहर मे जगह-जगह दुकाने सजने लगी हैं। जहां व्यापारियों ने तरह-तरह के राखियों का स्टॉक सजाया है, परंतु इस बार इनके दामो मे भारी बढ़ोत्तरी महसूस की जा रही है। बांधवभूमि संवाददाताओं ने जिले के विभिन्न कस्बों का दौरा कर खरीदी करने बाजार आई ग्रामीण और मध्यम वर्ग की महिलाओं से जब इस संबंध मे चर्चा की तो उन्होने बताया कि अब से पहले तक त्यौहार की पूरी खरीदी एक-से दो हजार तक मे आराम से हो जाती है, इस बार उतने ही सामान पर दो से तीन हजार रूपये खर्च करना पड़ रहा है।

हर चीज हुई कीमती

बहनो ने बताया कि इस वर्ष नकेवल राखियां बल्कि कपड़े और मिठाईयां भी मंहगी हो गई हैं। ऊपर से रक्षा सूत्र बाधने जाने के लिये किराये पर भी तो पैसा खर्च करना पड़ेगा। हलांकि इसके बावजूद उनके उत्साह मे कोई कमी दिखाई नहीं दे रही। महिलाओं ने कहा कि चीजें चाहे मंहगी हो या सस्ती, भाईयों के सामने यह कीमत कुछ भी नहीं। रक्षाबंधन पर उनकी कलाईयों पर राखी बांधने तो जाना ही है। वहीं राखियों की बिक्री मे कमी के बावजूद इसके दामो मे 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

साधारण आयटम की डिमाण्ड
जैसे-जैसे रक्षाबंधन नजदीक आ रहा है, बाजारों मे रौनक बढ़ने लगी है। शहरों मे रंग-बिरंगी और आकर्षक राखियों की दुकाने सज चुकी हैं। हलांकि यहां अधिक फेंसी और मंहगी राखियों की बजाय साधारण आयटमो की डिमाण्ड ज्यादा है। बड़े शहरों मे जहां 15 रूपये से 60 हजार रूपये तक की राखियां दुकानो मे उपलब्ध हैं, वहीं उमरिया मे फिलहाल 5 से 100 रूपये तक की ही रेंज दिखाई दे रही है। उधर मंहगाई और मंदी को देखते हुए दुकानदारों ने भी माल की स्टॉकिंग बेहद सतर्कता के सांथ की है।

कारोबार मे मंदी
कारोबार के जानकारों का मानना है कि जिले के शासकीय कार्यालयों, कालरियों, रेलवे, वन, विद्युत सहित अधिकांश विभागों मे हाल के कुछ वर्षो के दौरान 10 से 90 फीसदी तक कर्मचारियों की छटनी हुई है। वहीं सरकार द्वारा हितग्राहियों को सीधे नगद लाभ देने वाली स्कीमे शुरू करने से विभागों, पंचायतों व निकायों मे संचालित विकास की योजनाएं मंद पड़ गई हैं। इसका सीधा असर लोगों के परचेस पॉवर और कारोबार पर पड़ा है। मार्केट मे त्यौहारों और शादियों पर उमडऩे वाली भीड़ अब दिखाई नहीं देती, लिहाजा व्यापारी भी परिस्थिति के अनुसार व्यापार लागत मे कमी करते जा रहे हैं। लगभग सभी तरह के व्यापार मे मंदी का दौर जारी है।

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