गर्मी मे खौलते घर पहुंच रहे नागरिक, यात्री सेवाओं की दुर्दशा पर पक्ष-विपक्ष मौन
बांधवभूमि, उमरिया
कटनी-बिलासपुर मार्ग से गुजर रही ट्रेनो की लेट-लतीफी यात्रियों के लिये मुसीबत का सबब बन गई है। हालत यह है कि इस रूट की शायद ही कोई ट्रेन ऐसी होगी, जो सही समय पर चल रही हो। शुक्रवार को हरिद्वार से पुरी जाने वाली उत्कल एक्सप्रेस करीब 10 घंटे विलंब से उमरिया पहुंची, जबकि प्रात: 6.33 बजे आने वाली गोंदिया-बरौनी एक्सप्रेस 15 घंटे से भी ज्यादा देरी से आई। इसके अलावा 12550 जम्मू-दुर्ग 3.26 की बजाय सुबह 8.48 बजे याने सवा 5 घंटे, 18235 भोपाल-बिलासपुर 4.15 घंटे, दुर्ग-छपरा सारनाथ और बरौनी-दुर्ग 3-3 घंटे तथा भोपाल-बिलासपुर अमरकंटक 2 घंटे देर से गुजरी। उमस भरी भीषण गर्मी मे गाडिय़ों की लेट-लतीफी से नागरिकों की बुरी हालत हो रही है। विशेष कर स्लीपर क्लास मे यात्रा कर रहे लोग तो खौलते हुए घर पहुंच रहे हैं।
रहस्य बनी समस्या
ट्रेनो के विलंब से चलने का मामला अब काफी पुराना हो चुका है। कोई विशेष परिस्थिति हो तो बात समझ मे आये, पर ट्रेनो का लेट होना तो रोज का ढर्रा बन गया है। लोग महीनो से इसकी शिकायत कर रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि आखिर क्या बात है, और यह समस्या खत्म क्यों नहीं हो रही। किसी अधिकारी, कर्मचारी या यूनियन के पास जनता के इस सवाल और गाडिय़ों की देरी के रहस्य का जवाब नहीं है।
किस काम के जनप्रतिनिधि
शहडोल संभाग की यात्री सुविधायें अब तक के सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रही हैं। स्टापेज नहीं मिलने की बात हो या ट्रेनो को अकारण रद्द किये जाने का मामला। वर्षो से नागपुर, मुंबई या अन्य महानगरों के लिये सीधी रेल सेवा की मांग अथवा न्यू कटनी मे गाडिय़ों को घंटों जानबूझ कर रोकने का मुद्दा। कई समस्यायें ऐसी हैं जो जनता को खून के आंसू रूला रही हैं, लेकिन किसी का भी मन नहीं पसीज रहा। ऐसा लगता है कि पक्ष और विपक्ष दोनो को ही यात्रियों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। हर तरफ सिर्फ खामोशी है। दिल्ली दरबार के नुमाईन्दे, जिन्हे लाखों वोटों से जितवाया गया, वे तो मुंह मे दही जमाये तमाशा देख रहे हैं। सवाल उठता है कि ऐसे जन प्रतिनिधि किस काम के जो समय पर जनता के हित की लड़ाई ही न लड़ सकें।
कहीं महकमे ने तो नहीं ली सुपारी
वहीं जानकार इस पूरे मसले को दूसरे नजरिये से देख रहे हैं, जो काफी हद तक सही भी है। उनका मानना है कि अरसे से भारतीय रेल पर धन्ना सेठों का वकृदृष्टि रही है। वे चाहते हैं कि अन्य उद्योगों की तरह रेल विभाग भी कौडिय़ों के दाम खरीद लिया जाय परंतु देश के लिये गर्व का प्रतीक रही इस संस्था पर आसानी से काबिज नहीं हुआ जा सकता। इसके लिये पहले रेलवे को बदनाम किया जाना जरूरी है, ताकि जनता भी यह मान बैठे कि इसे चलाना सरकार के बस मे नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं कि महकमे ने भी कार्पोरेट से रेलवे को बदनाम करने की सुपारी ले ली है।
बरौनी 15 तो उत्कल पहुंची 10 घंटे लेट
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