आसान शिकार की तलाश मे इंसानी बस्तियों का कर रहे रूख
उमरिया। जंगल मे लगातार बढ़ रहे मनुष्यों के दखल ने जंगली जानवरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। अब जबकि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मे बाघों की संख्या 124 हो गई है और यह संख्या लगातार बढऩे वाली है तो ऐसे मे सावधानियां जरूरी हो गई है। अब जंगल मे मनुष्य के दखल को कम करने के लिए प्रयास किया जाना बेहद आवश्यक हो गया है। जंगल मे होने वाले अतिक्रमण और दूसरे निर्माण रोके जाने से ही बाघों का जीवन उन्मुक्त हो पाएगा।
इस तरह परिवर्तन
बाघों के स्वभाव मे परिवर्तन को लेकर एक नए तरह के अनुसंधान पर चर्चा प्रारंभ हो गई है। बाघों के स्वभाव मे दो तरह के परिवर्तन साफ तौर पर देखे जा सकते हैं। पहला परिवर्तन तो यह है कि वे घने जंगल को छोड़कर उन क्षेत्रों मे ज्यादा विचरण कर रहे है जहां पास मे ही रहवासी क्षेत्र है और दूसरा परिवर्तन यह कि वे आसान शिकार को अपना भोजन बना रहे हैं। बाघों के स्वभाव मे इस परिवर्तन को लेकर लगभग सभी सेमीनारों मे चर्चाएं होने लगी हैं। दरअसल इस परिवर्तन के पीछे वे बदलती हुई परिस्थितियां हैं जिसका शिकार जंगल बन रहे हैं। जंगल अब पहले जैसे नहीं रहे और वहां मनुष्यों का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बारे मे चर्चा करते हुए डा.एबी श्रीवास्तव ने बताया कि ये गंंभीर विषय है और इस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए।
जंगल मे अतिक्रण
जंगल पर मूल रूप से जानवरों का अधिकार है लेकिन वोट की राजनीति करने वाले राजनेता जंगल की जमीन पर अतिक्रमण करके घर और खेती करने वालों को अधिकार देने की हिमायत कर रहे है। इससे जंगल मे मानव दखल बढ़ गया और जानवर इधर-उधर भागने के लिए मजबूर हो गए। अकेले उमरिया जिले मे करीब 200 हेक्टेयर वनभूमि पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है जिसके लिए वन विभाग के अधिकारियों को मशक्कत करनी पड़ रही है।
बसे दर्जनों गांव
कई गांव जंगल के अंदर आज भी कई गांव बसे हुए हैं जहां रहने वाले ग्रामीणों को सभी सुविधाएं प्रदान की गई है। बांधवगढ़ के जंगल मे गढ़पुरी, बगदरी, बगैहा, बड़वाही, कसेरू, कुशमहा, समरकोइनी, सेजवाही जैसे गांव बसे हुए हैं। इन गांव मे कुल 2043 परिवार निवास करते हैं और इन गांवों की जनसंख्या 5 हजार के आसपास है। इन गांवों में 10 हजार के आसपास मवेशी हैं और इन्हीं मवेशियों को बाघ अपना शिकार बनाता है।
खाली कराने मे बाधा
इन गांवों को खाली कराने के मार्ग मे कई तरह की बाधाएं हैं जिसके कारण काफ ी प्रयास के बावजूद वन विभाग के अधिकारी सफ लता अर्जित नहीं कर पा रहे हैं।
अतिक्रमण को नेतागिरी की शह
दरअसल जब भी अतिक्रणम हटाने की कोशिश की जाती है अतिक्रमण करने वालों को नेताओं का संरक्षण मिल जाता है। कोई भी इस मामले मे गंभीर नहीं है कि अतिक्रमण के कारण जंगल के जानवरों का जीवन प्रभावित हो रहा है। इस मामले को पूरी तरह गंभीरता से लेना जरूरी हो गया है ताकि वन्य प्राणियों का जीवन सुरक्षित रह सके।