नई दिल्ली। केंद्रीय विद्यालयों में सुबह की सभा के समय संस्कृत श्लोक बोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। पीआईएल की सुनवाई के दौरान बुधवार को कोर्ट ने कहा कि अगर कोई प्रार्थन नैतिक मूल्य पैदा करती है,तब इस किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। एक नास्तिक वकील ने केंद्र के दिसंबर 2012 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें केंद्रीय विद्यालय में श्लोक गाने को अनिवार्य किए जाने की बात कही गई थी।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सूर्यकांत और एमएम सूद्रेश की पीठ ने कहा कि इस तरह की प्रार्थना छात्रों में नैतिक मूल्यों को जन्म देती है।मुख्य शिक्षा में इसका अलग महत्व है। नैतिक मूल्यों को जन्म देने किसी धर्म विशेष से जुड़ा नहीं है। कोर्ट 2017 की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। बता दें कि 2012 में केंद्रीय विद्यालय संगठन ने विद्यालयों में ‘असतो मा सद्गमय’ प्रार्थना को अनिवार्य कर दिया था। 2019 में दो जजों की बेंच ने मामले में सुनवाई की थी। तब कोर्ट ने कहा था कि याचिका संविधान के आर्टिकल 28 (1) के महत्व पर सवाल खड़ा कर रही है। इस आर्टिकल में कहा गया है, कि कोई भी सरकारी निधि से चलने वाला विद्यालय धर्म विशेष की शिक्षा नहीं दे सकता। याचिकाकर्ता कहना है कि केवीएस का आदेश इस आर्टिकल का उल्लंघन करता है।
प्रार्थना छात्रों में नैतिक मूल्यों को जन्म देती:सुप्रीम कोर्ट
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