भोपाल गैस त्रासदी मामले मे सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई पूरी
भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी में प्रभावितों को यूनियन कार्बाइड से अतिरिक्त मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। 3 दिन तक सुनवाई चली। अब फैसला सुरक्षित रखा गया है। गैस पीड़ित संगठनों को उम्मीद है कि जल्द ही सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात में हुई थी। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के एक टैंक से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस रिस गई थी। इसके बाद चारों ओर लाशें ही लाशें बिछ गई थीं। जिन्हें ढोने के लिए गाड़ियां कम पड़ गई थीं। पिछले महीने ही 38वीं बरसी मनाई गई। वहीं, गैस त्रासदी से जुड़े संगठन उचित मुआवजे को लेकर लगातार मांग उठा रहे थे। भोपाल के नीलम पार्क में एक महीने तक धरना प्रदर्शन भी किया गया। ताकि, केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में मौत और प्रभावितों के सही आंकड़े प्रस्तुत कर सकें।
भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी में प्रभावितों को यूनियन कार्बाइड से अतिरिक्त मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। 3 दिन तक सुनवाई चली। अब फैसला सुरक्षित रखा गया है। गैस पीड़ित संगठनों को उम्मीद है कि जल्द ही सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात में हुई थी। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के एक टैंक से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस रिस गई थी। इसके बाद चारों ओर लाशें ही लाशें बिछ गई थीं। जिन्हें ढोने के लिए गाड़ियां कम पड़ गई थीं। पिछले महीने ही 38वीं बरसी मनाई गई। वहीं, गैस त्रासदी से जुड़े संगठन उचित मुआवजे को लेकर लगातार मांग उठा रहे थे। भोपाल के नीलम पार्क में एक महीने तक धरना प्रदर्शन भी किया गया। ताकि, केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में मौत और प्रभावितों के सही आंकड़े प्रस्तुत कर सकें।
गैस पीड़ितों की ओर से रखा गया पक्ष
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने बताया कि गुरुवार को गैस पीड़ितों की ओर से पक्ष रखा गया। जिसमें बैंच ने हमें सुना। तीन दिन चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है। ढींगरा ने बताया कि यूनियन कर्बाइड को इसकी जानकारी थी कि गैस रिसाव की वजह से परमानेंट क्षति पहुंचेगी। सरकार से भी यह बात छुपाई गई थी। वहीं, सिविल और क्रिमिनल जिम्मेदारी नहीं निभाई गई और आज भी भगोड़ा है। यह पक्ष भी कोर्ट में रखा गया है। हमने कोर्ट से अपील की कि कैसे गैस पीड़ितों को राहत दी जा सकती है? सरकार को मानना पड़ा कि गैस पीड़ितों की चोंटे एक दिन की नहीं, जिंदगी भर की है। गैस पीड़ितों के साथ नाइंसाफी हुई है, यह भी कोर्ट ने माना है। हमें उम्मीद है कि हमारे पक्ष में पॉजीटिव फैसला होगा।
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने बताया कि गुरुवार को गैस पीड़ितों की ओर से पक्ष रखा गया। जिसमें बैंच ने हमें सुना। तीन दिन चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है। ढींगरा ने बताया कि यूनियन कर्बाइड को इसकी जानकारी थी कि गैस रिसाव की वजह से परमानेंट क्षति पहुंचेगी। सरकार से भी यह बात छुपाई गई थी। वहीं, सिविल और क्रिमिनल जिम्मेदारी नहीं निभाई गई और आज भी भगोड़ा है। यह पक्ष भी कोर्ट में रखा गया है। हमने कोर्ट से अपील की कि कैसे गैस पीड़ितों को राहत दी जा सकती है? सरकार को मानना पड़ा कि गैस पीड़ितों की चोंटे एक दिन की नहीं, जिंदगी भर की है। गैस पीड़ितों के साथ नाइंसाफी हुई है, यह भी कोर्ट ने माना है। हमें उम्मीद है कि हमारे पक्ष में पॉजीटिव फैसला होगा।
कई महीनों तक किया आंदोलन
गैस पीड़ित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि 1997 में मृत्यु के दावों के पंजीकरण को रोकने के बाद सरकार सर्वोच्च न्यायालय को बता रही है कि आपदा के कारण केवल 5,295 लोग मारे गए। आधिकारिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से बताते हैं कि 1997 के बाद से आपदा के कारण होने वाली बीमारियों से हजारों लोग मरते रहे हैं। मृत्यु का वास्तविक आंकड़ा 25 हजार से ज्यादा है। इसके चलते पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे।
गैस पीड़ित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि 1997 में मृत्यु के दावों के पंजीकरण को रोकने के बाद सरकार सर्वोच्च न्यायालय को बता रही है कि आपदा के कारण केवल 5,295 लोग मारे गए। आधिकारिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से बताते हैं कि 1997 के बाद से आपदा के कारण होने वाली बीमारियों से हजारों लोग मरते रहे हैं। मृत्यु का वास्तविक आंकड़ा 25 हजार से ज्यादा है। इसके चलते पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे।
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