शहडोल/सोनू खान। मंगल का दिन 6 वर्षाे बाद बीईओ रहे अशोक शर्मा के लिए अमंगलकारी साबित हुआ, 1 करोड़ से अधिक की शासकीय राशि के गबन के आरोप में अंतत: बुढ़ार थाने में आपराधिक मामला दर्ज किया गया, हालाकि अभी गबन के बड़े जखीरे की एक तार ही पुलिस ने छेड़ी है, इस मामले में अभी करोड़ों की अन्य राशि तथा पुत्र, पत्नी और भाई तथा दर्जनों रडार पर आ सकते हैं।
शहडोल। भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके पूर्व बीईओ व परियोजना अधिकारी अशोक शर्मा के खिलाफ मंगलवार की शाम बुढ़ार थाने में बीईओ डी.के.निगम की शिकायत पर अपराध कायम किया गया है, पुलिस ने शासकीय राशि के गबन, कूटरचना आदि के प्रमाणित जांचों के उपरांत भादवि की धारा 409, 420, 467, 468, 471 के तहत अपराध कायम कर आरोपी की तलाश शुरू कर दी है। गौरतलब है कि वर्ष 2014-15 के दौरान बुढ़ार विकास खण्ड में बीईओ के पद पर रहे अशोक शर्मा के ऊपर विभिन्न मामलों में करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, इन्हीं दर्जनों मामलों में से एक मामले में 1 करोड़ 1 लाख 72 हजार 176 रूपये की राशि के गबन का आरोप प्रमाणित हुआ था।
दिन भर चला घटना क्रम
कलेक्टर डॉ. सतेन्द्र सिंह और पुलिस अधीक्षक अवधेश कुमार गोस्वामी उक्त मामले को गंभीरता से लेते हुए, कलेक्टर के निर्देश पर आदिवासी विकास विभाग की तीन सदस्यीय टीम जिसमें रणजीत सिंह धुर्वे प्राचार्य कन्या शिक्षा परिसर शहडोल, विमल चौरसिया सहायक सांख्यिकीय अधिकारी परियोजना सोहागपुर एवं एस.एल. महोबिया कनिष्ठ लेखाधिकारी सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग शामिल थे, सुबह 12 बजे ही बुढ़ार बीईओ कार्यालय पहुंची और दस्तावेजों की जांच की जाने लगी। बीईओ बुढ़ार डी.के. निगम, सहायक आयुक्त एम.एस. अंसारी के साथ तमाम दस्तावेज लेकर दोपहर को बुढ़ार थाने पहुंचे। देर शाम तक दस्तावेजों की छानबीन के बाद शहडोल से मूल दस्तावेजों की प्रति थाना प्रभारी महेन्द्र सिंह चौहान ने तलब की। देर शाम करीब 7 से 8 के बीच में अशोक शर्मा के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया।
संगठित गिरोह था शर्मा का!
अशोक शर्मा लगभग 7 से 8 वर्षाे तक बुढ़ार में बीईओ थे, महज इस अवधि में ही अशोक शर्मा पर 8 से 10 करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप हैं, राजनैतिक आकाओं की देहरी पर माथा टेकने और आदिवासी विकास विभाग तथा पूर्व जिला प्रमुख के मैनेजमेंट व चाटूकारिता से कई बार अपराध प्रमाणित होने के बाद भी श्री शर्मा कार्यवाही से बचते रहे। बीते एक दशक के दौरान अशोक शर्मा ने अपने छोटे भाई गोपाल शर्मा के सहारा ट्रेवल्स के नाम पर लाखों के फर्जी भुगतान, पूर्व में गांधी चौक शहडोल में अपने पुत्र के नाम पर संचालित पतंजलि के प्रतिष्ठान से लाखों के फर्जी बिलो के भुगतान के साथ ही पत्नी के नाम पर फर्जी एनजीओ संचालित कर लाखों की राशि का गबन किया था। इनके साथ इस खेल में दर्जनों फर्मों के संचालक और संरक्षण देने में नौकरशाह भी शामिल थे। आशा है कि पुलिस ने जब भ्रष्टाचार के पिटारे को खोल ही दिया है तो, इस गिरोह में शामिल हर चेहरा बेनकाब होगा।
बेपर्दा हुआ संरक्षण दे रहे उपायुक्त
आयुक्त जनजातीय कार्य मध्यप्रदेश के द्वारा 19 मई को विभागीय पत्र क्रमांक 8801 जारी कर सहायक आयुक्त शहडोल को अशोक शर्मा के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का पत्र भेजा गया था। उक्त पत्र की प्रति कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और संभागीय उपायुक्त जनजातीय कार्य संभाग शहडोल को भी भेजी गई थी। 19 मई के बाद 7 दिनों के अंदर यह कार्यवाही होनी थी, लेकिन माह भर बीतने के बाद भी न तो, आपराधिक मामला दर्ज हुआ और न ही इस मामले को फाईलों में खेलने के लिए बनाई गई थी, तीन सदस्यीय टीम ने अब तक कोई रिपोर्ट ही सौंपी थी। मजे की बात तो यह है कि संभागीय उपायुक्त ने अपने ही विभाग के आयुक्त के पत्र का हवाला देकर मामले को लटकाने की नीयत से निर्धारित 7 दिवसों की अवधि को दरकिनार कर पुन: इस मामले में जांच कमेटी बैठा दी थी। इतना ही नहीं उन्होंने कमेटी को 15 दिन के अंदर मामले की जांच कर प्रतिवेदन सौंपने के निर्देश दिये थे, लेकिन मंगलवार को कलेक्टर की फटकार के बाद उक्त टीम बुढ़ार बीईओ कार्यालय पहुंची और जांच के नाम पर आडिट आदि करना शुरू किया।
राहत की जगह हाईकोर्ट की फटकार
खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए हर खेल में माहिर अशोक शर्मा को जब जनजातीय कार्य विभाग भोपाल से बीती 19 मई को एफआईआर के लिए पत्र जारी हुआ तो, उन्होंने जिले के मुखिया को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, सूत्रों पर यकीन करें तो अशोक शर्मा ने माननीय उच्च न्यायालय में जनजातीय कार्य विभाग के आयुक्त के आदेश को शहडोल कार्यालय में पदस्थ उपायुक्त के साथ मिलकर माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। डब्ल्यूपी-10144-2021 में अशोक शर्मा ने जिला प्रशासन के साथ अपने ही विभाग के मुखिया को कटघरे में खड़ा किया था, मजे की बात तो यह है कि मंगलवार को ही इस मामले की सुनवाई थी और माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष कलेक्टर शहडोल व अन्य ने वर्चुवल रूप से उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा, जानकारों की माने तो अशोक शर्मा ने उच्च न्यायालय में दिये गये शपथ पत्र में हेरफेर की थी। कलेक्टर के द्वारा रखे गये पक्ष के बाद इस मामले का खुलासा हुआ और अशोक शर्मा को फटकार भी सुननी पड़ी।
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