वन विभाग घोटाले मे पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा, अभी बड़ों पर कार्यवाही नहीं
उमरिया। जिले के वन विभाग मे बीते साल उजागर हुए करोड़ों रूपये के घोटाले मे थाना कोतवाली पुलिस ने स्वर्ग सिधार चुके महकमे के बड़े बाबू कमलेश द्विवेदी पर अब जाकर मामला पंजीबद्ध किया है। बताया जाता है कि संतोष सिंह पिता सरयू सिंह निवासी ग्राम अकमनिया थाना नौरोजाबाद की शिकायत पर मृतक बाबू के विरूद्ध धारा 409, 420, 407, 471 का अपराध दर्ज कर विवेचना शुरू की गई है। इस प्रकरण मे फिलहाल किसी बड़े अधिकारी पर केस नहीं बनाया गया है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि विवेचना मे दोषी पाये जाने पर उन्हे भी जद मे लिया जायेगा। हलांकि जानकार इसकी संभावना से इंकार कर रहे हैं। उनका मानना है कि अपराध का मुख्य सूत्रधार अब इस दुनिया मे नहीं है, लिहाजा उसकी गवाही संभव नहीं है। पुलिस भले ही किसी पर भी केस अपराध दर्ज कर ले पर उसे कोर्ट मे सिद्ध करना मुश्किल होगा। इस तरह से कमलेश बाबू की आड़ मे माल की मलाई छानने वाले अधिकारी भी पाक-साफ हो जायेंगे।
बाबू की खूबी के कायल थे अफसर
सामान्य वन मण्डल उमरिया अंतर्गत जिला लघु वनोपज सहकारी समिति मे पदस्थ सहायक वर्ग-3 का यह बाबू तत्कालिक जरूरतें पूरी करने मे महारत के कारण सभी का चहेता और विश्वसनीय था। बताया जाता है कि कमलेश बाबू अक्सर स्थानीय तथा दौरे पर आने वाले वरिष्ठ अधिकारियों के लिये नास्ता, भोजन के अलावा जरूरत के अनुसार अन्य इंतजाम भी करता था। इसके अलावा कार्यालय मे लगने वाले छोटे-मोटे सामान की खरीदी का जिम्मा भी उसे ही सौंप दिया गया था।
इस तरह किया फर्जीवाड़ा
बताया जाता है कि कमलेश द्विवेदी ने रोजमर्रा की सामग्री के लिये जारी होने वाले चेक के जरिये फर्जीवाड़े का खेल शुरू किया। पहले वह 20 या 30 हजार का चेक तैयार करता फिर राशि के आगे की 1 या 2 अंक जोड़ कर उसे बढ़ा लेता। इस तरह उसका खेल परवान चढ़ता गया। कहा जाता है कि अफसरों को खुश करने के लिये उसने करोड़ों रूपये ब्याज पर भी लिये थे। उसके कार्यालय मे सुबह से रात तक लेनदारों की भीड़ लगी रहती थी। कई बार आफिस मे शराबखोरी और जुआं का मामला भी सुर्खियां बना, पर अधिकारियों का वरदहस्त कार्यवाही मे हमेशा बाधा बना रहा।
आडिट मे उजागर हुई गड़बड़ी
इस धांधली को छिपाने के लिये कमलेश ऑडिटरों को भी पटा लेता था, परंतु इस बार उसकी बात नहीं बनी। विभागीय ऑडिटरोंने जब बैंक खाते और विभागीय कैशबुक का मिलान किया गया तो उन्हे करीब 5 से करोड़ से भी अधिक का फर्क नजर आया। इस मामले की जब जांच शुरू हुई तो पता चला कि यह खेल कई सालों से चल रहा था और अधिकारी आंख मूंद कर कमलेश के चेकों पर चिडिय़ा बैठाते जा रहे थे। जब गोरखधंधा पकड़ मे आया और जैसे ही कार्यवाही की तैयारी शुरू हुई तभी आरोपी बीमार पड़ा और उसकी मौत हो गई। महकमे से जुड़े लोगों का दावा है कि यह मामला कई परतों मे है, पर न अब कमलेश बाबू रहे ना, किसी की दिलचस्पी।

