न जिंदा को इलाज न शव के लिये वाहन
डाक्टर के अभाव मे आदिवासी ने तोड़ा दम, बाईक पर ले जानी पड़ी लाश
मानपुर/रामाभिलाष त्रिपाठी। जनपद मुख्यालय के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की लचर सेवाओं पर कोरोना महामारी करेले पर नीम चढ़ा की कहावत को चरितार्थ करती दिखाई दे रही है। आलम यह है कि लोगों को ना तो जिंदा रहते इलाज मिल रहा है और ना ही मरने के बाद सुकून। कल सामने आये ऐसे ही एक मामले ने न सिर्फ मानवता को शर्मसार कर दिया है बल्कि जनता को हर प्रकार की सुविधायें मुहैया कराने के सरकार के दावों की पोल भी खोल कर रख दी है।
रस्सियों से बांध कर ले गये शव
बताया जाता है कि सहजन कोल पिता छोटकनी कोल 35 निवासी पतौर को अचानक पेट मे दर्द की शिकायत पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था। जहां डॉक्टर उपलब्ध न होने के कारण उसने अस्पताल परिसर मे ही तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। अचानक हुई घटना के बाद परिजन पहले तो बदहवास हो गये। फिर उन्होने शव को घर ले जाने के लिये गुहार लगाई परंतु तहसील मुख्यालय मे शव वाहन उपलब्ध न होने के कारण उन्हे मृतक को बाईक पर रस्सियों से बांध कर ले जाना पड़ा।
लापरवाही की लिस्ट मे एक और नाम
गौरतलब है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मानपुर पर क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामो के बाशिंदे आश्रित हैं। जनपद और तहसील मुख्यालय मे स्थित होने के बावजूद यहां की स्वास्थ्य सेवायें अक्सर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। बीते कुछ वर्षो मे दर्जनो लोगों को समय पर डाक्टर और इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गवानी पड़ी है। सहजन कोल की मौत भी अब इसी फेहरिस्त मे शामिल हो गई है । इससे भी ज्यादा शर्मनाक यह है कि एक आदिवासी युवक के शव को महज 5-7 किलोमीटर पहुंचाने के लिये एक वाहन भी मयस्सर न हो सका और मृतक के परिजनो को रोते-धोते हुए उसका मृत शरीर मोटरसाईकिल पर ले जाने के लिये मजबूर होना पड़ा।
न जिंदा को इलाज न शव के लिये वाहन
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