नगर परिषदों मे अध्यक्ष पदों के आरक्षण को चुनौती

हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार व निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया

जबलपुर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति रवि मलिमथ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, १९६१ की धारा २९ ब की संवैधानिकता व नगर परिषदों में अध्यक्षों के आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश शासन के नगरीय प्रशासन विभाग सहित निर्वाचन आयोग को ‘रूल निसी’ नोटिस जारी किया है. उल्लेखनीय है कि उचेहरा नगर परिषद के पूर्व पार्षद महेश कुमार शर्मा ‘दाऊ’ ने याचिका दायर करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद २४३- टी की यह मंशा है कि नगरीय निकायों के अध्यक्षों का आरक्षण रोटेशन प्रक्रिया को अंगीकृत कर किया जाए और इसकी पद्धति राज्य की विधायिका तय करे. किन्तु राज्य की विधायिका ने नगर पालिका अधिनियम , १९६१ की धारा २९-ब में ऐसे किसी रोटेशन का प्रावधान नहीं किया बल्कि यहइस सन्दर्भ में नियम बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दे दी. राज्य सरकार ने नियम बनाकर एस सी व एस टी वर्ग हेतु नगर परिषदों के अध्यक्ष का आरक्षण उन निकायों में करने का प्रावधान करने का एस टी एस सी की जहाँ जनसँख्या अधिक है , और रोटेशन का नियम लागू नहीं किया है. इस कारण राज्य सरकार वर्ष १९९४ से लगभग ३० नगर परिषदों को एस सी व १० से अधिक नगर परिषदों के अध्यक्ष के पदों को लगातार इन वर्गों के लिए आरक्षित कर रही है .उदाहरण के लिए , जैतवारा नगर परिषद १९९४ से लगातार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। संविधान में कोई भी आरक्षण अनंत काल के लिए नहीं होता है , व एक विशेष उद्देश्य और विशेष समय के लिए होता है . रोटेशन प्रणाली अंगीकृत नहीं करने से नगर परिषदों के अध्यक्ष पद स्थायी रूप से एक वर्ग विशेष हेतु आरक्षित हो गए हैं जो लोकतंत्र के विपरीत है. इस कारण, न केवल इन क्षेत्रों से दूसरे पिछड़े वर्गों व सामान्य वर्ग मतदाता निर्वाचन में भाग नहीं ले पा रहे हैं, अपितु दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में भी एससी व एसटी वर्ग के व्यक्ति हेतु आरक्षण नहीं हो पा रहा है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी, असीम त्रिवेदी, अपूर्व त्रिवेदी, आनंद शुक्ला, अरविन्द सिंह चौहान, आशीष कुमार तिवारी पैरवी कर रहे हैं.

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