सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि ट्रिपल टेस्ट रिक्वायरमेंट का पालन हो रहा है या नहीं
भोपाल। मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव की तरह अब नगरीय निकायों के चुनाव में भी ओबीसी आरक्षण पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन की उस स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) को खारिज करते हुए आदेश दिया है कि पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट रिक्वायरमेंट का पालन हो रहा है या नहीं। इसे ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को जनहित याचिकाओं का तीन महीने में निराकरण करने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश 15 दिसंबर 2021 को दिया था। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को चुनौती देने के लिए अलग-अलग नौ जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं। युगलपीठ में सभी जनहित याचिकाओं को एक साथ सुना जा रहा है। कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए दो नगर निगम, 79 नगर पालिका, नगर परिषद के अध्यक्ष के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी, लेकिन राज्य शासन ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। राज्य शासन ने एसएलपी में हाई कोर्ट द्वारा आरक्षण की प्रक्रिया पर लगाई रोक को हटाने की मांग की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर 2021 को एसएलपी खारिज कर दी और मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी के आदेश में पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को लेकर दिशा निर्देश दिए हैं। नगरीय निकाय के महापौर, अध्यक्ष के आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट रिक्वायरमेंट का पालन हो रहा है या नहीं। इसे ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट को जनहित याचिकाओं का निराकरण करना है। ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर-इंदौर खंडपीठ में जनहित याचिकाएं दायर थीं, वह सभी जबलपुर बेंच में स्थानांतरित हो चुकी हैं। सभी 15 याचिकाओं की सुनवाई जबलपुर में चीफ जस्टिस की बेंच में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हाई कोर्ट को इनका निराकरण तीन महीने में करना होगा। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में तर्क दिए थे कि महापौर व नगर पालिका, नगर परिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण में रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। जो नगर निगम व नगर पालिका के अध्यक्ष पद लंबे समय से आरक्षित हैं। इस कारण दूसरे लोगों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है। आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए। ग्वालियर के रवि शंकर बंसल अपनी याचिका में डबरा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के आरक्षण को चुनौती दी थी। इस याचिका में स्टे आदेश आने के बाद ग्वालियर खंडपीठ में आठ याचिकाएं और आ गईं। मनवर्धन सिंह की जनहित याचिका में 2 निगम व 79 नगर पालिका व नगर परिषद के आरक्षण पर रोक लगा दी थी। कानून के जानकारों के अनुसार, नगरीय निकाय में दिए जाने वाले आरक्षण की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 243 में की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के संबंध में के. कृष्ण मूर्ति बनाम केंद्र शासन ( 7 एससीसी 202) व विकास कृष्णराव गवली बनाम महाराष्ट्र शासन (6 एसीसी 73) ट्रिपल टेस्ट रिक्वायरमेंट की व्यवस्था दी है। यदि राज्य शासन किसी की पिछड़ा वर्ग जाति को राजनीतिक आरक्षण देना चाहती है, उसके सर्वे के लिए एक कमीशन का गठन करना होगा। कमीशन उस जाति का सर्वे करेगा। कमीशन तय करेगा कि उसे कितना आरक्षण दिया जाना चाहिए।
नगरीय निकाय मे भी ओबीसी आरक्षण पर संकट
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