मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
भोपाल। मध्य प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर जारी अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लौटा दिया है। कोर्ट ने कहा कि जब मामले पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रही है तो दो अदालतों को इस मसले पर सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही हाईकोर्ट को 16 दिसंबर को इस पर सुनवाई करने के निर्देश दिए हैं। इससे पहले 7 दिसंबर, 11 दिसंबर, 13 दिसंबर, 14 दिसंबर को सुनवाई टलती रही थी। सैयद जाफर और जया ठाकुर ने मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में सरकार द्वारा रोटेशन के आधार पर आरक्षण न करने के खिलाफ रिट पिटीशन दायर की थी। पैरवी अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने की। राज्य निर्वाचन आयोग ने 4 दिसंबर को प्रदेश में पंचायत चुनाव घोषित किए थे। जबकि जिला पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण 18 दिसंबर को होना तय था।
रोटेशन का नियम लागू करें
सैयद जफर ने कहा कि शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नगर निगम और नगर पालिका पर रोटेशन के आधार पर आरक्षण देने पर सहमति जताई है। हम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग करते हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ग्राम पंचायत चुनाव में भी रोटेशन का नियम लागू करें। 2014 के आरक्षण को निरस्त करते हुए 2022 में होने वाले पंचायत चुनाव में रोटेशन का पालन करें। वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार का ऑर्डिनेंस संविधान के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे माना। याचिकाकर्ता के वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट के सामने अध्यादेश को गैर-संवैधानिक होने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है। उसने यह भी कहा कि चूंकि, मामला हाईकोर्ट में पहले से चल रहा है। इस वजह से इसे लेकर दो अदालतों को सुनवाई करने की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट में ही इसे पेश करें।
क्या है अध्यादेश में
पिछले महीने राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 लागू किया था। इसके जरिए कमलनाथ सरकार की बनाई व्यवस्था को पलट दिया गया था। नए अध्यादेश से सरकार ने ऐसी पंचायतों का परिसीमन निरस्त कर दिया है, जहां एक साल में चुनाव नहीं हुए हैं। सभी जिला, जनपद या ग्राम पंचायतों में पुरानी व्यवस्था ही लागू रहेगी। यानी 2014 की ही व्यवस्था रहेगी। जो पद जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, वही रहेगा। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पंचायत राज कानून में रोटेशन आधार पर आरक्षण होता है। अध्यादेश ने इसकी मूल भावना का उल्लंघन किया है। इस वजह से यह गैर-संवैधानिक है और इसे तत्काल रद्द किया जाए।
ओबीसी आरक्षित 27 फीसदी सीटों को सामान्य अधिसूचित करें
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव के लिए ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षित 27 फीसदी सीटों को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग को अहम निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा है कि इन 27 फीसदी सीटों को सामान्य श्रेणी में अधिसूचित करें, जिससे चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। प्रीम कोर्ट ने बीती छह दिसंबर को राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों पर स्थानीय निकाय चुनाव पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने यह साफ किया था कि बाकी सीटों के लिए चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी। अब इन आरक्षित सीटों पर भी प्रक्रिया आगे हढ़ाने के लिए ये निर्देश दिया गया है।
राज्य निर्वाचन आयोग सात दिन में जारी करे नई अधिसूचना
सुप्रीम कोर्ट ने इन सीटों को सामान्य के घोषित करने हेतु नई अधिसूचना जारी करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को एक सप्ताह का समय दिया है। पीठ ने यह भी कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बिना पालन के राज्य सरकार की ओर से ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाने का फैसला स्वीकार नहीं किया जाएगा।
महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर अदालत ने दिया ये निर्देश
न्यायाधीश एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की पीठ ने यह निर्देश महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर किए गए एक आवेदन पर सुनवाई के दौरान दिया। इस आवेदन में राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में शीर्ष अदालत की ओर से दिए गए पिछले सप्ताह के आदेश में बदलाव करने की मांग की गई थी।
अब 17 जनवरी 2021 को होगी आवेदन पर अगली सुनवाई
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छह दिसंबर के आदेश में बदलाव करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि अंतराल को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 17 जनवरी 2021 नियत कर दी।