दो साल मे डबल से भी ज्यादा हो गया प्लास्टिक से बने पाईपों के दाम
उमरिया। मंहगाई ने यूं तो हर एक वर्ग को मुसीबत मे डाल दिया है, पर इससे सबसे ज्यादा प्रताडि़त वो किसान ही हो रहा है जो पहले से ही कई समस्याओं से ग्रसित है। बीते कुछ वर्षो के दौरान डीजल, खाद, बीज और मजदूरी के अलावा सिचाई के कार्य मे इस्तेमाल होने वाले पीवीसी पाईप्स, डीजल तथा बिजली पंप सहित अन्य सामग्रियों के दाम आसमान छूने लगे हैं। पीवीसी की कीमतों मे तो अभूतपूर्व तेजी आई है। दुकानदारों का कहना है कि बीते तीन सालों मे पीवीसी से बनी हर सामग्री के रेट दोगुने से भी अधिक हो गये हैं।
दुकानदार भी परेशान
उल्लेखनीय है कि सिचाई या निस्तार हेतु बोरिंग मे लगने वाले केशिंग पाईप, सिचाई हेतु आवश्यक सक्शन या डिलेवरी पाईप, पीवीसी फुटवाल्व या फिर करंट देने के लिये आवश्यक केबल हो, इन सभी सामान की कीमतों मे हद से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। इससे जहां दुकानदारों को स्टाक मे अधिक पूंजी फंसानी पड़ रही है, वहीं खेती की लागत मे और इजाफा होता जा रहा है।
समर्थन मूल्य मे मामूली बढ़ोत्तरी
एक ओर जहां सरकार किसानो की आय बढ़ाने और खेती को लाभ का धंधा बनाने के दावे करते नहीं थकती, वहीं दूसरी ओर कृषि कार्य मे लगने वाले हर सामान के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिससे यह अब भारी घाटे का धंधा साबित हो रहा है। किसानो का कहना है कि आज से 6-7 साल पहले जो डीएपी 1200 रूपये मे मिल रही थी वह अब 1900 रूपये हो गई है। 50 किलो वाली यूरिया की बोरी 240 मे थी पर अब 45 किलो वाली बोरी 300 मे मिल रही है। सुपर फास्फेट के दाम भी 240 से 300 हो गये हैं। जबकि इस दौरान समर्थन मूल्य मे प्रति क्विंटल सिर्फ 300-400 रूपये ही बढ़े हैं।
अंबानी की मोनोपॉली
उद्योगों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि पीवीसी से बने सामान के मंहगे होने का मुख्य कारण डीजल व कोयले के दामों मे हुई बेहताशा वृद्धि तथा कच्चे माल के निर्माण पर रिलायंस कम्पनी का एकाधिकार होना है। उनके मुताबिक सभी कम्पनियों को खरीदने के बाद वर्तमान मे पीवीसी दाने की सप्लाई सिर्फ अंबानी की रिलायंस कम्पनी ही कर रही है। सरकार भी इस ओर आंखे मूंदे बैठी है। यदि बाहर देशों से पीवीसी का आयात खोला जाय तो इसमे भारी कमी आ सकती है लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।
दोगुनी हुई खेती की लागत
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