तीन साल मे नहीं मिली सरकारी नौकरी

तीन साल मे नहीं मिली सरकारी नौकरी
जिले मे भयावह हो रही बेरोजगारी की समस्या, पंजीयन मे भी आई भारी कमी
उमरिया। तेजी से बंद होते उद्योग, निजीकरण और वर्षो से ठप्प पड़ी शासकीय भर्ती का असर अब जिले मे भी साफ तौर पर दिखने लगा है। रोजगार कार्यालय के आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं। विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान मे 20 हजार 301 युवा बेराजगार के रूप मे दर्ज हैं और बीते तीन साल से किसी भी पंजीकृत व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं मिली है। इसकी वजह से युवाओं मे हताशा है, परिणामस्वरूप रोजगार के पंजीयन मे भारी गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2018 मे जहां जिले के 22009 युवाओं ने बेरोजगार के रूप मे अपना पंजीयन कराया, वह 2019 मे घट कर मात्र 9914 रह गया। हलांकि 2020 मे यह बढ़ कर 14398 जरूर हुआ पर यह संख्या दो वर्ष पूर्व से काफी कम है। जानकारों का मानना है कि युवाओं मे यह बात घर कर रही है कि रोजगार का पंजीयन औपचारिकता मात्र है, जिसकी वजह से वे इस प्रक्रिया से दूर भाग रहे हैं।
प्रायवेट नौकरी का झुनझुना
सरकार के निर्देश पर लगाये जा रहे रोजगार मेलों से बेरोजगारी दूर करना भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। रोजगार कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि 2018 मे विभिन्न प्रायवेट कम्पनियां और ठेकेदार जिले के 8949 बेरोजगारों को नौकरी देने पर राजी हुए थे। 2019 मे कोरोना के कारण यह संख्या शून्य रही। जबकि जारी साल मे 761 लोग निजी संस्थानों द्वारा नौकरी के लिये चुने गये हंै। इनमे से कितने लोग नौकरी के लिये पहुंचे, इसका कोई रिकार्ड नहीं है। बताया गया है कि निजी संस्थाओं का वेतन 7 हजार से शुरू हो कर अधिकतम18 हजार रूपये प्रतिमांह है। इतनी रकम से परिवार पालना तो दूर स्वयं एक व्यक्ति का खर्च चलना भी मुश्किल है।
बूढ़े कंधों पर आश्रित युवा
नौकरी न मिलने के कारण हजारों युवा आज भी अपने बुजुर्ग माता-पिता पर निर्भर है। अधिकांश तो विवाह के बाद अपने परिवार का खर्च भी उन्हीे से ले रहे हैं। जानकारों का मानना है कि पुश्तैनी संपत्ति और अपने अभिभावकों के वेतन अथवा पेंशन के कारण फिलहाल नौजवानों को किसी प्रकार का टेंशन नहीं है। असली दिक्कत तो नौकरी की आयुसीमा खत्म होने और जमा पूंजी चूकने के बाद आनी है। उस समय तक बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च भी कई गुना बढ़ जायेगा। ऐसे मे लोगों का जीवन-यापन कैसे होगा यह सोचनीय है।
रिटायर हो रहे हजारों कर्मचारी
जिले का सारा रोजगार बांधवगढ़ के पर्यटन और वर्षो पुरानी बूढ़ी हो चुकी कालरियों पर निर्भर है। हर महीने उमरिया की चपहा और पिपरिया कालरी मे लगे कामगारों को होने वाले भुगतान से कारोबार को गति मिलती रही। इन दो कालरियों मे कभी 1500 से 2000 लोगों को रोजगार मिलता था परंतु अब यह संख्या घट कर 1000 से भी कम हो गई है। दूसरी ओर हजारों की संख्या मे अन्य विभागों के कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए हैं। कुल मिला कर इन वजहों से जिले को वेतन के रूप मे हर महीने मिलने वाली राशि मे करोड़ों रूपये की कमी आई है जिसका असर व्यापार पर भी पड़ा है।

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