रूस, चीन और पाक की भूमिका पर उठने लगे सवाल
नई दिल्ली। तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से ही यह सवाल उठ रहा है, कि आखिर कैसे इतनी जल्दी इस संगठन ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया है। इस सवाल का जवाब अमेरिका को भी जानना है और पूरी दुनिया को। तालिबान की तेजी ने इसका शक गहरा दिया है, कि ये केवल तालिबान के बस की बात नहीं थी और इसमें किसी दूसरे देश या संगठन का भी बराबर का हाथ था। अफगानिस्तान के पड़ोसी तीन देश तालिबान के समर्थन में जिस तरह से सामने आए उससे इन देशों पर अंगुली उठना बेहद स्वाभाविक था। ये तीन देश चीन, पाकिस्तान और रूस हैं। रूस ने बयान दिया है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार से बेहतर तालिबान का आना है। ये किसी और ने नहीं, बल्कि अफगानिस्तान में राजदूत दिमित्री झिरनोव ने कहा है। उन्होंने कहा है तालिबान के काबुल पर कब्जे को वहां बेहतर मानते हैं। रूस का बयान अपने आप में दिलचस्प है। ऐसा इसकारण भी है, क्योंकि पिछले माह तालिबान के प्रवक्ता ने मास्को में ही अफगानिस्तान में अपनी सरकार के बनने की बात कही थी। मास्को में तालिबान नेता ने ये प्रेस कांफ्रेंस पहली बार नहीं की थी, बल्कि इससे पहले भी वहां कई प्रेस कांफ्रेंस कर चुके थे। इसलिए ही ये बात उठ रही है कि रूस ने कहीं न कहीं अमेरिका से अपना पुराना बदला ले लिया है।
अफगानिस्तान में चीन के निवेश को भी नुकसान नहीं
विदेशी राजनीति के जानकारों के मुताबिक, पिछले माह ही चीन ने तालिबान के नेताओं से बैठक कर ये सुनिश्चित किया था कि वहां उनकी सीमा पर किसी तरह की कोई अस्थिरता नहीं फैलाएंगे और न ही कोई हमला करेगा। तालिबान ने भी चीन को इस बात का भरोसा दिलाया था वहां ऐसा कुछ भी नहीं करेगा, जिससे चीन को नुकसान हो। तालिबान ने साफ कर दिया था कि वहां अफगानिस्तान में चीन के निवेश को भी नुकसान नहीं पहुंचने देगा। कहने का सीधा अर्थ था कि चीन और तालिबान ने एक-दूसरे का सीधा समर्थन किया था। वहीं तालिबान और पाकिस्तान का वर्षों पुराना नाता है। तालिबान को हथियारों की सप्लाई से लेकर उनके आतंकियों को ट्रेनिंग देने का काम पाकिस्तान करता रहा है। अमेरिका के पूर्व एनएसए ने भी इस बात का आरोप लगाया था कि तालिबान को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग करता रहा है। इतना ही नहीं अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और पूर्व राष्ट्रपति सहित एनएसए ने भी पाकिस्तान की ये कहते हुए आलोचना की थी कि तालिबान को पाकिस्तान का खुला समर्थन रहा है।
अमेरिका ने तालिबान पर किये थे ताबड़तोड़ हमले
बता दें कि जब रूस ने अफगानिस्तान में डेरा डाला था, तब अमेरिका ने उसके खिलाफ स्थानीय स्तर पर लड़ाकों को तैयार किया था। उसकी बदौलत रूस को बाहर जाना पड़ा था। इसके बाद तालिबान खुद इतना मजबूत हो गया कि उसने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। ९/११ के हमले के बाद जब अमेरिका ने तालिबान पर ताबड़तोड़ हमले किए,तब तालिबान को एक सीमित दायरे में सिमटने के लिए मजबूर होना पड़ा था। पिछले वर्ष एकाएक स्थिति तब बदली जब अमेरिका ने तालिबान के साथ एक समझौता किया, जिसमें अमेरिकी और नाटो फौज की वापसी का रोडमैप दिया गया था। इस वर्ष अप्रैल में तालिबान ने हमलों का सिलसिला तेज किया था और अगस्त के मध्य में आकर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।
सुरक्षित लाये गये भारतीय अधिकारी
अफगानिस्तान में तालीबानों के कब्जे के बाद अफरातफरी मची हुई है। भारत समेत अन्य देशों की सरकारें अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकालने की कोशिशें कर रही हैं। आज सुबह गुजरात के जामनगर एयरबेस पर अफगानिस्तान के काबुल में फंसे करीब १८० जितने भारतीयों को एयरलिफ्ट कर लाया गया। सी-१७ ग्लोबमास्टर से जामनगर एयरबेस पहुंचे भारतीयों का राज्य सरकार और जिला प्रशासन की ओर से गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। इस मौके पर आयोजित पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए अफगानिस्तान स्थित भारतीय राजदूत रूद्रेन्द्र टंडन ने कहा कि स्वदेश लौटने की अकल्पनीय होती है। दो सप्ताह के लंबे संघर्ष और अनेक आयोजनों के बाद भारतीय नागरिकों को स्वदेश वापस लाने का मिशन आज शांतिपूर्वक पूर्ण हुआ है, जो आनंद की बात है।
तालिबान को तिकड़ी की शह
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