बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के चर्चित काण्ड मे छोटी मछलियों पर ही हुई कार्यवाही
बांधवभूमि, रामाभिलाष त्रिपाठी
मानपुर। बीते साल जिले के बांधवगढ टाइगर रिजर्व मे जंगली हाथी के शिकार मामले मे हलांकि परिक्षेत्राधिकारी समेत तीन लोगों को निलंबित कर दिया गया है, परंतु कथा के सूत्रधार पर अभी भी किसी तरह की कार्यवाही नहीं हुई है। इसके पीछे कई तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं। बताया गया है कि प्रकरण की जांच अभी पूरी नहीं हुई है, लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि इस बहुचर्चित काण्ड के सभी दोषियों को उनके किये की सजा जरूर मिलेगी। उल्लेखनीय है कि इसी साल 9 जनवरी 23 को सोन नदी के पार शहडोल जिले मे स्थित उद्यान क्षेत्र के पनपथा बफर अंतर्गत छतवा जमुनिहां मे जंगली हांथी की हड्डियां पाई गई थी। इस मामले को दैनिक बांधवभूमि द्वारा अपने 13 जनवरी 2023 के अंक मे प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था। जिसके बाद उमरिया से लेकर भोपाल तक खलबली मच गई, और आला अधिकारियों ने इसकी जांच मध्यप्रदेश एसटीएफ और वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल इन्वेस्टीगेशन की संयुक्त टीम को सौंपने के निर्देश दिये गये।
हुई थी पैसों की लेनदेन
जानकारी के अनुसार बीते 26 अक्टूबर 22 को पनपथा बफर मे एक दुर्लभ दंतेल हांथी अचेत अवस्था मे पाया गया था। तब अधिकारियों ने कोदो खाने के कारण उसके बीमार होने की बात कही थी। जबकि यह मामला क्षेत्र मे सक्रिय हांथी दांत के तस्करों द्वारा की गई जहरखुरानी से जुड़ा हुआ था। हांथी की मौत के बाद नकेवल सच्चाई को छिपाया गया बल्कि साक्ष्य मिटाने के लिये उसके शव को आनन-फानन मे जला दिया गया था। आरोप है कि महकमे के एक बड़े अधिकारियों ने शिकारियों से लंबी रकम लेकर जांच का रूख ही मोड़ दिया। इस पूरे मसले मे निलंबित पनपथा बफर के रेंजर शीलसिंधु श्रीवास्तव, डिप्टी रेंजर कमला कोल तथा बीटगार्ड पुष्पेंद्र मिश्रा के अलावा एसडीओ एफएस निनामा का बड़ा रोल बताया गया था।
संदिग्धों को दी जांच की जिम्मेदारी
जांच मे टीम ने पाया कि जंगली हाथी का शिकार और उसकी मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार करने मे निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नही किया गया। इस प्रकरण की जानकारी उमरिया मे बैठे विभाग के आला अधिकारियों को अपने अमले से नहीं मीडिया के सूत्रों से मिली। घटनास्थल की फोटो और वीडियो देखने के बाद प्रबंधन ने एक टीम गठित की। जिसमे एसडीओ एएफएस निनामा, रेंजर और डिप्टी रेंजर जैसे वही अधिकारी शामिल थे, जिन पर हाथी की मौत और उसके शव को जलाकर मामले को रफादफा करवाने के आरोप लगे थे।
काम मे लग गये अधिकारी
जांच और घटना के सही कारणो का पता लगाने की बजाय अधिकारियों की टीम इसे दबाने के काम मे लग गई। उन्होने सबसे पहले लोगों के घटना स्थल की तरफ आने पर पाबंदी लगा दी, चश्मदीद पर मुंह बंद रखने का दबाव बनाया और जिस जगह पर हाथी को जलाया गया था, वहां की सफाई करा कर राख और हड्डियां हटा दी गई। इसी वजह से हांथी हत्याकाण्ड महीनो दबा रह गया।
अमले की तस्करों से सांठगांठ
वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोगों का कहना है कि पनपथा बफर का यह इलाका लंबे समय से तस्करों और शिकारियों का गढ़ रहा है। पिछले साल ही इस क्षेत्र मे एक बाघ को मार कर गाड़ दिया गया था। इससे पहले डब्ल्यूसीसीआई की टीम ने यहीं से दर्जन भर पेंगोलिन के शिकारी पकड़े थे। आरोप है कि इन घटनाओं मे तस्करों को विभागीय अमले का भी सहयोग मिलता है। ऐसे मे जांच टीम को इस ओर भी ध्यान देकर सूक्ष्मता से पड़ताल करनी होगी, तभी असली रैकेट का भण्डाफोड़ हो सकेगा।
जांच के दायरे से बाहर हांथी हत्या के सूत्रधार
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